रायपुर (सेन्ट्रल छत्तीसगढ़) : नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने प्रदेश सरकार के उस फैसले का कड़ा विरोध किया है. जिसमें हाथियों को जंगल और बस्तियों से दूर रखने के लिए सड़ा हुआ या अंकुरित धान खिलाने की योजना प्रदेश सरकार बना रही है. धरमलाल कौशिक ने कहा है कि इससे साफ होता है कि प्रदेश की सरकार धान खरीदी के बाद हुए भ्रष्टाचार से बचने के लिए अब भ्रष्टाचार की नई बिसात बिछा रही है. उन्होंने कहा कि इससे तय है कि हाथियों के नाम पर मार्कफेड से अंकुरित और सड़े हुए धान को करीब 2050 रुपए प्रति क्विंटलकी दर से खरीदा जाएगा.
कौशिक ने कहा कि प्रदेश सरकार की योजना संदिग्ध है और कई सवालों के घेरे में है. उनका कहना है कि जब सरकार खुले अतिशेष धान को 1350 रुपए में नीलाम कर रही है, तो सड़े हुए धान को 2050 की दर पर क्यों खरीदा जा रहा है. धरमलाल कौशिक ने साथ ही ये भी सवाल उठाया कि आखिर हाथियों के लिए सड़ा धान क्यों खरीदा जा रहा है, क्या उन्हें ये अच्छा लगता है. उनका कहना है कि दरअसल सरकार सड़ा अनाज के नाम पर पूरी घालमेल करना चाह रही है. उन्होंने कहा कि प्रदेश की कांग्रेस सरकार जो भी कर ले वह कम है.
हाथियों के लिए सड़ा धान क्यों खरीद रही सरकार- धरमलाल कौशिक
नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने कहा कि प्रदेश के धान संग्रहण केन्द्रों में अब तक करीब 0.19 मीट्रिक टन धान का उठाव नहीं हुआ है. मिलर्स भी कस्टम मिलिंग करने से मना कर दिए हैं खरीफ सीजन 2019-20 के संग्रहित धान पूरी तरह से सड़ चुके हैं लेकिन जिस तरह से हाथियों के नाम पर इस धान को खरीदने की योजना बनाई जा रही है. ये सबके समझ से परे है और यह प्रदेश की अजब सरकार की गजब कहानी को बताती है. उन्होंने कहा कि प्रदेश की सरकार के पास धान खरीदी को लेकर कोई स्पष्ट नीति नहीं है.
धरमलाल कौशिक ने कहा कि अब जब धान खरीदी को लेकर भारी भ्रष्टाचार हुआ है. तो उस पर पर्दा डालने के लिए हाथियों का सहारा लिया जा रहा है. गजराजों को दो गज जमीन देने में असफल सरकार, धान के नाम पर अब केवल सियासत कर रही है. प्रदेश सरकार को चाहिए कि लेमरू प्रोजेक्ट पर शीघ्र कार्य करते हुए हाथियों के बसाहट को लेकर ठोस पहल करें ताकि मानव और हाथियों के बीच के संघर्ष पर अंकुश लगाया जा सके. नेता प्रतिपक्ष कौशिक ने कहा कि हाथियों के दाना-चारा के नाम पर प्रदेश की कांग्रेस सरकार वन विभाग के माध्यम से जिस प्रस्ताव की बात कर रही है. कहीं उस प्रस्ताव के पीछे कोई गोपनीय प्रस्ताव तो नहीं है. जिसे प्रदेश सरकार को स्पष्ट करना चाहिए.