कोरबा(सेंट्रल छत्तीसगढ़)हिमांशु डिक्सेना:- आज मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल विधानसभा पाली-तानाखार के प्राचीनतम महादेव के मंदिर पहुंचे थे। जहां उन्होंने 108 बेलपत्र मंदिर के गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग पर अर्पित कर प्रदेश वासियों के लिए सुख एवं समृद्धि की कामना की। मंदिर के पुजारी और पुरातत्व विभाग के केयरटेकर शिव मंदिर के संबंध में जानकारी ली।पुरातत्व विभाग के केयरटेकर ने बताया कि मंदिर की प्रमुख विशेषताओं में से एक मंदिर के द्वार शाखा के अधोभाग में गंगा ,जमुना और शेव द्वारपालों का अंकन है। देवी गंगा का वाहक प्रतीक मगरमच्छ और यमुना देवी के वाहक प्रतीक कछुआ है। जिस पर मुख्यमंत्री ने कहा यह महादेव मंदिर ना केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है बल्कि अनेकता में अखंडता का संदेश भी दे रहा है। छत्तीसगढ़ की संस्कृति धनाढ्य है जिसका जीवित उदाहरण पाली में स्थापित यह महादेव मंदिर है।
द्वार शाखा पर उत्कीर्ण एक अभिलेख के अनुसार इस मंदिर का निर्माण बाण राजवंश के राजा विक्रमादित्य ने 870-900 ई. पूर्व के मध्य कराया था। इस मंदिर का जीर्णोद्धार लगभग 200 वर्षों के पश्चात रतनपुर के कलचुरी राजा जाजल्लदेव द्वारा करवाया गया। लगभग 3 फीट ऊंचे चबूतरे पर निर्मित यह मंदिर उत्तर भारतीय नागर शैली का प्रतिनिधित्व करता है। गर्भगृह की बाह्य दीवारों पर भद्र रथ में व्दि तलीय कुलिकाओं का समायोजन किया गया है। मंदिर के गर्भगृह का प्रवेश द्वार त्रिशाखा प्रकार का एवं विभिन्न अभिप्राय से सुसज्जित है। गर्भ ग्रह में शिवलिंग स्थापित है जिसके बाह्य भित्तियों पर उत्कीर्ण देव प्रतिमाओं में नटराज, वायुमुंडा, सूर्य,शिव वाहिनी दुर्गा एवं सरस्वती उल्लेखनीय है। गर्भगृह के सामने अष्टकोण मंडप है। स्थापत्य की दृष्टि से संभवतः यह स्थापतियों का दक्षिण कौशल क्षेत्र में एक नया प्रयोग था, को की अष्टकोणीय आकार के मंडप तत्कालीन समय में इस क्षेत्र में प्रस्तुत नहीं थे। मंडप के उत्तरी व दक्षिणी ओर वतायन है, साथ ही उत्तर की ओर एक अतिरिक्त प्रवेश द्वार की हैह मंडप की अंतः भित्तियों पर शैवाचार्यों एवं धर्मावलंबियों को विभिन्न मुद्राओं और क्रियाकलापों में व्यस्त दिखाए गया है, जोया प्रमाणित करता है कि तत्कालीन समय में यह क्षेत्र शैव संप्रदाय का बड़ा केंद्र था। यह मंदिर 22 एकड़ में फैले नौकोनिया तलाब के समीप स्थित है जिसके चलते इसका दृश्य और भी मनोरम दिखता है। प्रत्येक वर्ष माघ मास में पाली में आयोजित होने वाले मेले के दौरान काफी संख्या में पर्यटक मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं।