नवनिर्मित जिला गौरेला पेड्रा मरवाही की ग्राम चंगेरी की राष्ट्रपति की दत्तक पुत्र घोषित बैगा जनजाति की दिव्यांग बिरसिया बाई सुविधाओं के अभाव में रहने को मजबूर..

गरीबी गुनाह हो जैसे
गरीब को सजा पल-पल देती है,

राह का पत्थर ठोकर मार कर यह बतलाता है,
अभी धीरे चलो आगे और पत्थर है,

गौरेला पेंड्रा मरवाही(सेंट्रल छत्तीसगढ़) प्रयास कैवर्त :-सरकार दिव्यांग और राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र घोषित विशेष पिछड़ी विलुप्त जनजाति बैगा के लिए कितनी भी योजना बना ले मगर जमीनी हकीकत देखें तो आज भी विशेष पिछड़ी बैगा जनजाति अपने अस्तित्व को बचाने के लिए पल-पल संघर्ष करते हुए गरीबी की अंधकार में जीने को मजबूर है,हम बात कर रहे हैं नवनिर्मित जिला गौरेला पेंड्रा मरवाही के हाईप्रोफाइल चर्चित विधानसभा सीट मरवाही की जिसकी चर्चा मरवाही विधानसभा से लेकर दिल्ली के संसद तक चलती है उसी मरवाही विधानसभा के मछुआ बहुल क्षेत्र चंगेरी के जो सोन नदी के किनारे अंतिम छोर में बसे राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र घोषित विशेष पिछड़ी जनजाति बैगा दिव्यांग बेरसिया बैगा की जो सुविधाओं के अभाव में रहने को मजबूर है, रोजमर्रा की आवश्यक सुविधाए पानी पीने के लिए दिव्यांग बेरसिया बैगा मजबूरी को साथ लेकर उबड़ खाबड़ रास्तों से गुजर कर कंकड़ पत्थर की चोट सहकर सर पर बर्तन रखकर नदी की गंदा पानी पीने को पल-पल मजबूर है, दिव्यांग की बिरसिया बैगा की संघर्ष की कहानी यहीं खत्म नहीं होती आपको बताते चलें कि दिव्यांग बेरसिया बैगा दोनों पैर से दिव्यांग है उसके पास रहने का कोई ठिकाना नहीं है बरसात में छप्पर का पानी अक्सर उसकी मुश्किल बढ़ा देती है, जिसके कारण रातों में गीले में सोने को मजबूर रहती है, उसकी संघर्ष की चरम सीमा और बढ़ जाती है शौचालय न होने के कारण जब बरसात के दिनों शौचालय के लिए कीचड़ वाले रास्तों से होकर गुजारना पड़ता है, गरीबी और बदहाली का जुल्म इस कदर जारी है कि खुद को उसका जिम्मेदार ठहराते हुए हताशा और निराशा को ही गले लगा कर जीने को मजबूर है,

जानती और समझती है कि सभ्य समाज के पढ़े लिखे शिक्षित सक्षम अधिकारी और जनप्रतिनिधिगण अभी गहरी निंद्रा में है उसकी सुधि लेने को तैयार नहीं है, बेचारी अनपढ़ अशिक्षित है ना इसलिए व्यवस्थाओं पर ज्यादा सवाल नहीं करती ? उसको भी इस बात का इल्म है जो काम पैर वाले नहीं कर सकते वह काम मैं अपनी गरीबी और मजबूरी में भी कर सकती हूं, मुझे भला अब देखने के लिए कौन आ सकते हैं?

राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र…. प्रदेश में आदिवासियों का असुरक्षित जनजीवन..? छत्तीसगढ़ में विलुप्त होती संरक्षित जनजातीय… इन दिनों प्रदेश की संरक्षित जनजातियाँ सुरक्षा के अभाव में जीवनयापन कर रही है,और सरकार की अनदेखी का ही परिणाम है कि राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहलाने वाली संरक्षित जनजातियाँ आज छत्तीसगढ़ से आहिस्ता-आहिस्ता विलुप्त होती जा रही है इल्म हो कि छत्तीसगढ़ प्रदेश में कुछ विशेष जनजातियों को विलुप्त होने से बचाने राष्ट्रपति का “दत्तक पुत्र” घोषित किया गया था।लेकिन इनके जीवन मे अब तक कोई सुधार नही हो पा रहा है।जबकि केंद्र सरकार की समस्त योजनाएं इन्हें सुरक्षा प्रदान करने के लिये ही चलाई जा रही है। फिर भी उन्हें अपनी हालातों को सुधरवाने के लिये शासन की तरफ से कोई पहल नही की गईं।
भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने जहां बस्तर का दौरा करके उसे अहमियत देने की कोशिश की, वहीं छत्तीसगढ़ में उनके ही ‘दत्तक पुत्र’ धीरे-धीरे समाप्त होते जा रहे हैं।छत्तीसगढ़ में कुछ विशेष संरक्षित जनजातियों को विलुप्त होने से बचाने के लिए राष्ट्रपति का “दत्तक पुत्र” घोषित किया गया है, लेकिन इनकी स्थिति में कोई सुधार नहीं हो पा रहा है। ये काफ़ी चिन्तिनीय और निन्दनीय भी है अतः इसका निदान भी आवश्यक है।

गौरतलब है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर मोदी जो दिव्यांग को सम्मानित शब्द दिव्यांग देकर दिव्यांगों के सम्मान को बढ़ाया है, उन्हें भी यह देखकर बहुत हैरानी और दुख होगा कि कितना कष्टमय होता है दिव्यांगों का जीवन कैसे संघर्ष करते हैं पल पल अपने अस्तित्व की लड़ाई को,

नवनिर्मित जिला बनने के बाद छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बहुयामी महत्वकांक्षी योजनाओं को ध्यान में रखते हुए करोड़ों रुपए की सौगातें देकर क्षेत्र के लिए विकास की गंगा लगातार बहाया गया है, पर अफसोस राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र घोषित विशेष पिछड़ी जनजाति बैगा गरीबी और दिव्यांग का दंश झेल रही दिव्यांग बिरसिया बैगा के घर तक विकास की गंगोत्री का पानी अभी तक नहीं पहुंचा,

अब देखना यह होगा राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र घोषित विशेष पिछड़ी जनजाति बैगा दिव्यांग बिरसिया बैगा की झकझोर कर भावुक कर देने वाली तस्वीरों को देखकर सक्षम जिम्मेदार अधिकारियों के द्वारा अगला कौन सा ठोस कदम उठाया जाएगा,