रायपुर(सेंट्रल छत्तीसगढ़): हिंसा, लूटखसोट और वसूली के दम पर तकरीबन तीन दशक से दक्षिण छत्तीसगढ़ के ज्यादातर जिलों में खूनी उत्पात मचा रहे नक्सली अब सरकार से बातचीत चाहते है. उन्होंने कथित तौर पर इसके लिए बतौर प्रस्ताव एक पत्र भी भेजा है. हालांकि उन्होंने इस बातचीत को सशर्त बताया है. किसी भी तरह के शांति बहाली या वार्ता के पहले उन्होंने मांग की है कि बस्तर समेत प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में तैनात अर्धसैनिक बलों को वापिस भेजा जाए. उनके सभी संगठनों पर लगे कड़े प्रतिबन्धों को हटाया जाए और नक्सलियों के नेता व साथी जो जेलों में बंद है उन्हें रिहा किया जाए. यह सभी शर्तों को मानने पर नक्सली अपने मोर्चे से पीछे हटने को तैयार है.
दूसरी ओर प्रदेश सरकार ने किसी भी तरह के खत के मिलने की बात से इनकार किया है. कैबिनेट मंत्री और प्रदेश सरकार के प्रवक्ता रविन्द्र चौबे ने इस तरह के प्रस्ताव मिलने की खबर को खारिज किया है. उन्होंने बताया है उनकी सरकार भी बस्तर समेत पूरे प्रदेश में शांति और हिंसामुक्त माहौल चाहती है. वे भी वार्ता के लिए तैयार है लेकिन पहले नक्सली और माओवादी नेताओ को हथियार डालने होंगे. बिना हिंसा का रास्ता छोड़े किसी भी तरह की बातचीत सम्भव नही है. दूसरी ओर गृहमंत्री ने कहा है कि वे सीएम भुपेश बघेल से इस पर चर्चा करेंगे तभी किसी तरह का फैसला लिया जाएगा.
गौरतलब है कि नई सरकार के बाद से माओवादी नेता लगातार बैकफ़ुट पर है. केंद्र और राज्य की यूनिफाइड एक्शन और बढ़ते सुरक्षाबलों के दबाव के चलते नक्सलियों ने फिर से एक बार “वार्ता” का पैतरा अपनाया है. हालांकि यह पहली बार नही जब हिंसाप्रिय नक्सलियों ने सरकार के सामने ऐसे प्रपोजल रखे हो. डॉ रमन की सरकार के दौरान भी कई दफे बातचीत के हालात पैदा हुए लेकिन नतीजा हमेशा शून्य रहा. सभी सरकारों ने किसी भी तरह के चर्चा से पहले हिंसा रोकने की बात कही है. सरकार का साफ कहना है कि आतंकी, नक्सली और उग्रवादियों के लिए उनकी नीति में कोई बदलाव नही आएगा. शांति वार्ता के पहले शांति कायम होना चाहिए.