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रायपुर (सेंट्रल छत्तीसगढ़): छत्तीसगढ़ में मानसून (monsoon in chhattisgarh) का आगमन हो चुका है. इसके बावजूद भी प्रदेश भर के तमाम धान संग्रहण केंद्रों (Paddy Collection Centers) में लाखों मीट्रिक टन धान खुले आसमान के नीचे रखा हुआ है. दरअसल केंद्रों से धान के उठाव की रफ्तार काफी धीमी है. इसके चलते ही तमाम सोसायटी में धान का उठाव नहीं हो पा रहा है और संग्रहण केंद्रों से लेकर सोसायटी में धान जाम के हालात बने हुए हैं. राज्य सरकार भले ही किसानों के हितों का हवाला देकर 2500 रुपए प्रति क्विंटल की दर से धान खरीद रही है, लेकिन इतने महंगे धान को बारिश में खुला छोड़ना लोगों को भी रास नहीं आ रहा है.
उपार्जन केंद्रों पर सड़ रहा धान
धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में धान उत्पादक किसानों को देशभर में सबसे अधिक कीमत पर धान का दाम प्राप्त हो रहा है. छत्तीसगढ़ में सत्ता बदलने के साथ ही मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सरकार (bhupesh government) ने किसानों को 2500 रुपए प्रति क्विंटल की दर से धान खरीदने के अपने घोषणा पर अमल करते हुए धान खरीदा. यही वजह है कि छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद से अब तक सबसे ज्यादा रिकॉर्ड 92 लाख मीट्रिक टन धान खरीदी बीते साल सरकार ने की है और इतने बड़े पैमाने पर धान की खरीदी होने के बाद अब प्रदेश की तमाम सोसायटियों में धान जाम के हालात बने हुए हैं. राज्य के ज्यादातर हिस्सों में तेज बारिश हो रही है.
6 महीने बाद भी धान का उठाव नहीं
मौसम विभाग ने आने वाले समय में भी प्रदेश के तमाम संभागों में मानसून को लेकर चेतावनी भी जारी की है, लेकिन तमाम सोसायटी और धान खरीदी केंद्रों में 6 महीने से ज्यादा समय से भी धान का उठाव नहीं हो पाया है. ऐसे में लाखों टन धान अब केंद्रों में पड़ा है. कई केंद्रों में धान भीग भी गया है, तो बहुत से केंद्रों में नमी की वजह से धान के अंकुरित (Paddy rotting at procurement centers) होने का भी खतरा मंडराने लगा है. राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि धान के देखने और अंकुरित होने के तमाम नुकसान का असर सीधे तौर पर सरकारी खजाने पर पड़ेगा. इस दिशा में अभी तक सरकार की ओर से कोई ठोस रणनीति नहीं बन सकी है. अधिकारियों ने भी दबी जुबान में लक्ष्य से ज्यादा धान की खरीदी होने और लॉकडाउन की वजह से धान के उठाव पर असर होने की बात कही है. धान की नीलामी में भी देरी की वजह से संग्रहण केंद्रों में जाम के हालात हैं.
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उपार्जन केंद्रों पर धान
राज्य सरकार पर राजस्व को घाटा पहुंचाने का आरोप
भारतीय जनता पार्टी में लंबे समय से किसानों के लिए काम कर रहे और अपेक्स बैंक के पूर्व चेयरमैन अशोक बजाज कहते हैं कि ‘धान के रखरखाव को लेकर छत्तीसगढ़ सरकार की व्यवस्था पूरी तरह से फेल हो चुकी है. पूरे प्रदेश में 1 महीने से रुक-रुककर बारिश भी हो रही है. अब तो मानसून भी आ चुका है. धान के फड़ों में जो कैप कवर लगाये जाते हैं, वो बार-बार फट जाता है. उचित रखरखाव के अभाव में धान पूरी तरह से खराब (Paddy rotting at procurement centers) हो रहा है.
भीग रहा धान
अशोक बजाज कहते हैं कि किस षड्यंत्र के तहत धान को भीगने के लिए छोड़ दिया गया है, यह समझ से बाहर है. इसी तरह से उपार्जन केंद्रों में भी 18 से 20 लाख मीट्रिक टन धान अस्त-व्यस्त तरीके से पड़ा हुआ है. कोई इंतजाम ठीक से नहीं है. अन्नदाता जो परिश्रम करके पसीने के बल पर धान उपजाते हैं, वह बर्बाद हो गया है. सरकारी अधिकारी इन सारी चीजों को नजरअंदाज कर रहे हैं. धान की प्रोसेसिंग करनी चाहिए थी, वे मिलिंग कर लेते, उसके बाद चावल बन जाता, तो रखने में इनको दिक्कत नहीं होती. इस बार जो धीमी गति से मिलिंग हुई है, उसके कारण ये स्थिति बनी है. अब सरकार मिल वालों पर दबाव बना रही है.
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धान के हालात
चबूतरा बनाने से मिला बड़ा फायदा
जिला सहकारी केंद्रीय बैंक रायपुर के सीईओ सीपी जोशी बताते हैं कि धान के रखरखाव को लेकर प्रति क्विंटल 2 रुपये के हिसाब से राशि उपलब्ध कराई जाती है. इसी राशि के माध्यम से सहकारी समिति अपने संसाधन जुटाकर धन को सुरक्षित रखने का प्रबंध करती है. जितनी धान खरीदी गई है, उसकी सुरक्षा और ड्रेनेज की व्यवस्था की जाए. पर्याप्त मात्रा में तार फेंसिंग की व्यवस्था भी रखनी होती है, ताकि किसानों से जो धान खरीदी गई है, उसका नुकसान ना हो. सीपी जोशी का कहना है कि शासन ने बहुत अच्छी पहल की है कि जिला पंचायतों के माध्यम से धान उपार्जन केंद्रों में धान के रखरखाव के लिए चबूतरे का निर्माण कराया गया है. पहले बेमौसम बारिश होती थी, तो जमीन के नीचे काफी नमी होने से धान बड़े पैमाने पर खराब होता था, लेकिन चबूतरे के निर्माण से काफी धान नुकसान होने से बचा हुआ है. इसके अलावा आगे राज्य सरकार मंडी बोर्ड के माध्यम से चबूतरों में शेड भी लगवाने का प्लान कर रही है.
किसानों की परेशानी
वरिष्ठ पत्रकार राम अवतार तिवारी कहते हैं कि पूरे देश की अर्थव्यवस्था जब बैठी हुई थी, उसके बावजूद भी पूरे देश के किसानों ने पिछले एक दशक में सबसे ज्यादा धान उत्पादन छत्तीसगढ़ में किया है. छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है और किसान आधारित उद्योग है. यहां राइस मिल हैं, चावल उत्पादन का बड़ा केंद्र है. छत्तीसगढ़ राज्य सरकार की ओर से किसानों को धान का 2500 रुपये समर्थन मूल्य देने के असर से किसानों का आकर्षण काफी बड़ा है. उनको उपज का सही दाम मिल रहा है. धान की खरीदी ज्यादा हुई है. अब धान खरीदी करने के बाद राज्य सरकार के सामने कई तरह की चुनौतियां पड़ी हैं. एक तरफ केंद्र सरकार ने छत्तीसगढ़ सरकार के बढ़े हुए समर्थन मूल्य के धान को खरीदने से इंकार कर दिया है. दूसरी तरफ राइस मिलरों को जो उठाव करना चाहिए, वह भी नहीं कर पा रहे, इसलिए बड़ी संख्या में धान तमाम केंद्रों में अभी भी खुले में पड़े हैं, लेकिन बरसात के कारण इसे नुकसान हुआ है. यह राष्ट्रीय क्षति है, क्योंकि इस दिशा में पहले भी सरकारों ने कोई बड़ा काम नहीं किया है. सरकारों को गोदाम बनाना चाहिए था, जो नहीं बना.
वरिष्ठ पत्रकार राम अवतार तिवारी का कहना है कि आप इतने समय से समर्थन मूल्य प्रधान खेती कर रहे हैं. यह चीजें कोई रोक नहीं सकती, चाहे कोई भी सरकार रहे, पूर्ववर्ती सरकार भी धान खरीदती रही है. वर्तमान सरकार भी खरीद रही है. लेकिन योजनाबद्ध तरीके से अधिकारियों और भ्रष्ट तंत्र ने इसे धान की बर्बादी और भ्रष्टाचार का जरिया बना दिया है.
प्रदेश में धान जाम के हालात
बेमेतरा में 3 लाख 80 हजार क्विंटल धान समितियों में रखा है. राजनांदगांव में 10 लाख 66 हजार क्विंटल धान उपार्जन केंद्रों में पड़ा है. महासमुंद में 7 लाख क्विंटल धान का उठाव नहीं हो पाया है. सरगुजा में 12 हजार 420 क्विंटल धान संग्रहण केंद्रों में कैप कवर से ढंका है. जांजगीर चांपा में खुले आसमान में धान पड़ा है. हर उपार्जन केंद्रों में करीब 33 हजार क्विंटल धान खुले आसमान में रखा हुआ है. समितियों में खरीदी और उठाव बंद होने के बाद से धान के लिए विकट स्थिति बनी हुई है. बिलासपुर जिले में खुले में धान होने को लेकर लगातार शिकायतें भी आती रही हैं. यहां करीब 40 हजार क्विंटल धान खुले में है और नुकसान होने की भी जानकारी आ रही है.
2 साल में 16 करोड़ से ज्यादा कैप कवर पर खर्च
राज्य सरकार ने धान के सुरक्षित भंडारण और ड्रेनेज के लिए तिरपाल और कैप कवर की व्यवस्था भी की है. राज्य सरकार ने धान को गीला होने से बचाने के लिए 2 साल में 16 करोड़ 65 लाख के के कवर की खरीदी की थी. सरकार ने वर्ष 2019 में 12500 कैप कवर और इसके बाद 2020-21 में 10 हजार कैप कवर खरीदे थे.
- धान की खरीदी – 922373 मीट्रिक टन
- धान संग्रहण केंद्रों में जमा धान – 1398405 मीट्रिक टन
- प्रदेश में कुल उपार्जन केंद्र – 2311
- किसानों ने कराया पंजीयन – 2152986
- किसानों से धान की खरीदी – 2053599
- किसानों ने नहीं बेचा धान – 99387
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