कबाड़ का कारोबार चरम, जिला पुलिस कबाड़ियों पर नरम ?अवैध कारोबारी अशरफ मेमन पर पुलिस की मेहरबानी क्यों ? डेढ़ साल में अब तक नहीं हुई एक भी कार्रवाई? 

कोरबा (सेन्ट्रल छत्तीसगढ़ )अजय राय: जिले में बेधड़क हो रहा है करोड़ों के कबाड़ का कारोबार। धड़ल्ले से फल-फूल रहा है अवैध कारोबार ,कबाड़ में कुछ लोग हो रहे हैं लाल ,क्यों प्रसाशनिक नियंत्रण से बाहर है कबाड़ का कारोबार।
छोटे बच्चों को धंधे में लगा कर धकेल रहे अपराध की दुनिया में। कोरबा जिले के साथ साथ आसपास के क्षेत्रों में दो दर्जन से अधिक कबाड़ के व्यवसायी हैं सक्रिय।


कई वर्षों से करोड़ों का कारोबार कर खा रहे है मलाई।

दरअसल कबाड़ किंग के नाम से प्रख्यात अशरफ मेमन शहर के बीचों बीच कबाड़ का खुले आम व्यवसाय किया जा रहा है। जिला मुख्यालय से चंद दूरी पर ट्रांसपोर्ट नगर के समीप अशरफ नामक कबाड़ी बड़े तादात पर कबाड़ की खरीदी बिक्री करते चले आ रहा है। लेकिन पुलिस प्रशासन के द्वारा किसी प्रकार की कार्यवाही नहीं कि जाती है। और कबाड़ी के हौसले बुलंद होने से कबाड़ के बड़े कारोबार को अंजाम दिया जा रहा है। साथ आसपास के मंझोले कबाड़ियों को मैनेज किया जाता है,जबकि असरफ कबाड़ी इस कारोबार के अलावा जुआ खिलाने का भी काम करता चला आ रहा है। जिससे युवा वर्ग जुएं की लत में आकर अपराध को बढ़वा दे रहें हैं।

पुलिस पर उठ रहे है सवाल..

कोरबा जिले में अशरफ कबाड़ी को कबाड़ का सरगना माना जाता है वजह है कि अगर जिले में कबाड़ बेचना है तो असरफ के पास बेचना है क्योंकि अगर मंझोले कबाड़ी कोरबा जिले के आलाव अन्य जिलों में कबाड़ को बेचतें है तो अशरफ द्वारा बल पूर्वक उनको धमकाया जाता है। पुलिस भी अशरफ कबाड़ी के काम के भलीभांति जानती है लेकिन कार्यवाही करने के नाम पर केवल खानापूर्ति ही कि जाती है। इससे साफ जाहिर होता है कि कही न कहीं पुलिस भी इस कबाड़ी सरगना के खिलाफ कार्यवाही करने से बचती नज़र आ रही है। जबकि अशरफ कबाड़ी के खिलाफ विभिन्न थानों में कई मामले दर्ज है। अशरफ के द्वारा SECL क्षेत्र में डीजल चोरी की घटनाओं को भी अंजाम दिया जाता है। कुछ दिनों पूर्व ही कुसमुंडा थाने में डीजल चोरी के आरोपियों को पकड़ा गया था। फिलहाल कोरबा जिले के कबाड़ी सरगना अशरफ मेमन में पुलिस भी कार्यवाही करने से बचती हुई नजर आती है। कहीं न कहीं कबाड़ी अशरफ मेमन को पुलिस का संरक्षण तो नही प्राप्त है ये लोगों में चर्चा का विषय है।

पुलिस की बेबसी व लाचारी और अशरफ की पहुंच से जुड़ी पढ़िए ये ख़ास रिपोर्ट

जिले में इन दिनों धड़ल्ले से कबाड़ियों का अवैध कारोबार चल रहा है। इस व्यवसाय को करने के लिए न तो किसी को लाइसेंस की जरूरत होती है और न ही किसी की अनुमति की आवश्यकता होती है। इस व्यवसाय को शुरू करने के लिए सिर्फ एक स्टाक रजिस्टर की जरूरत होती है। स्टॉक रजिस्टर में खरीद-बिक्री किए गए समान को दर्ज कर इस व्यवसाय को आसानी से किया जा सकता है। इस व्यवसाय में पुलिस और प्रशासन का कोई रोकटोक नहीं होता है।

कबाड़ियों की ऐसी क्या मजबूरी अशरफ को छोड़ नहीं बेच सकते किसी को कबाड़ का माल

मजेदार बात यह कि जिले में दो दर्जन से भी अधिक कबाड़ के व्यवसायी हैं। जो बेरोकटोक व बेखौफ कारोबार कर रहे हैं। इन पर किसी का नियंत्रण नहीं होने से जिले में दिन ब दिन कबाडिय़ों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। कबाड़ी बिना सत्यापन के साइकिल, मोटरसाइकिल एवं अन्य चोरियों के समाना को बेधड़क खरीद रहे हैं। इस व्यवसाय में जिले के बाहर से आए लोग सक्रिय हैं। उनके द्वारा ही जिले में इस व्यवसाय को बढ़ावा दिया जा रहा है। आलम यह है कि पुलिस कबाडिय़ों पर नकेल नहीं कस पा रही है। कभी कभार ऐसे लोगों पर कार्रवाई कर औपचारिकता पूरी की जाती है।

जिले में अक्सर सोलर प्लेट, साइकिल व बाइक चोरी की घटनाएं होती रहती हैं। दिन-दहाड़े सार्वजनिक स्थानों से साइकिल और बाइक चोरी हो रहीं हैं। साइकिल चोरी होने पर अमूमन लोग थाने में रिपोर्ट दर्ज नहीं कराते, क्योंकि पुलिस इसे छोटा मामला बताकर ध्यान नहीं देती। बाइक और साइकिल चोरी की रिपोर्ट तो लिखी जाती है, लेकिन अक्सर ये वापस नहीं मिलते। इसका कारण यह है कि चोरी की साइकिल और बाइक के कलपुर्जे को अलग-अलग कर कबाड़ में बेच दिया जाता है। इसके अलावा इस धंधे में लोहे के सामान व घरेलू उपयोग के सामान सहित कई कीमती समान पानी के मोल कबाड़ी अपने दलालों के माध्यम से खरीद कर करोड़ों कमाते है।

बिना लाइसेंस के चल रहा करोड़ों का धंधा

कबाड़ व्यवसाय के लिए शासन ने कोई स्पष्ट नियम नहीं बनाया है, पर इसके लिए लाइसेंस जरूरी है। नियम के मुताबिक कबाड़ के व्यवसाय के लिए लाइसेंस बना होना चाहिए। शहर में कबाड़ की दो दुकानें हैं, पर उनके पास कोई लाइसेंस नहीं है। उन्होंने कहा कि जिले की दुकानें अवैध है क्योंकि उनके पास खरीदी-बिक्री की कोई रसीद भी नहीं होती। हालांकि औद्योगिक क्षेत्र नहीं होने के कारण यहां कबाड़ का बड़ा व्यवसाय नहीं होता।

कबाड़ के धंधे में बच्चे भी शामिल

कई मामले ऐसे भी आए हैं, जिनमें कबाड़ी बच्चों से चोरी के माल खरीदते हैं। वे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किशोरों को चोरी करने के लिए प्रेरित करते हैं। ये किशोर प्राय: गरीब तबके के होते हैं। पारिवारिक व सामाजिक मार्गदर्शन नहीं मिलने से वे घरो के आसपास फेंके गए कचरे में से कबाड़ चुनते है बाद में इन बच्चों पर पारिवारिक नियंत्रण नहीं होने के कारण नशे के गिरफ्त में आ जाते है और अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए चोरी के धंधे में उतर आते है।

कबाड़ व्यवसायियों पर पुलिस कार्रवाई नहीं

कबाड़ का व्यवसाय करने वालों के खिलाफ पुलिस के द्वारा कोई कार्रवाई नहीं करने से इनके हौसले बुलंद हो गए हैं और ये बेधड़क चोरी के सामानों की खरीद बिक्री के काम में लगे हुए हैं। यदि पुलिस के द्वारा ऐसे व्यवासियों में कड़ी कार्रवाई की जाएगी जो जिले से चोरी हुए कई समान इनके पास से बरामद हो सकता है। यहां के कबाड़ियों के पास ज्यादातर भवन निर्माण में उपयोग होने वाले छड़,वाहनों के चक्के एवं अन्य सामाग्री आसानी से बरामद किया जा सकता है। इसके साथ ही इस मार्ग से बड़ी मात्रा में ट्रकों में कबाड़ भर कर झारखंड, बिलासपुर और रायपुर की ओर माल सप्लाई कर दिया जाता है।

दर्जन से अधिक हैं कबाड़ व्यवसायी

इस धंधे में कोई रोकटोक नहीं होने के कारण कहीं भी कोई भी व्यक्ति आकर कबाड़ का दुकान चलाना शुरू कर देते हैं। शुरू-शुरू में एक दो एजेंट रख कर शहर के कबाड़ इकट्ठा करवा कर खरीदते हैं। बाद में इनके एजेंट बढ़ जाते हैं। इसमें किशोर बच्चे भी होते हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार कबाड़ी इनसे कम में कबाड़ का सामान खरीद कर थोक में अधिक रकम कमाते हैं। खासबात तो यह है कि जिले में कितने कबाड़ी हैं यह भी किसी के पास रिकार्ड में नहीं है। ये कबाड़ी कम दिनों में करोड़ो रुपए का कारोबार कर रहे हैं। कोरबा जिले के आसपास के क्षेत्रों में ही दर्जनों से ज्यादा कबाड़ी हैं।


जिले के एक थाना प्रभारी है मैनेजमेंट प्रमुख


कोरबा जिले के एक थाना प्रभारी जिन्हे हनुमान के नाम से भी जाना जाता है,जो की लंबे समय से अपने थाने में काबिज है।क्या उनके द्वारा मैनेजमेंट का जिम्मा है।


चोरों के हौसले बुलंद अब टॉवर को भी बना दिया निशाना
चोरों पर संरक्षको का आशीर्वाद इस कदर प्रभावशील है की, चोर बेधड़क अपने कार्य में लिप्त है।

कोरबा से अजय राय की रिपोर्ट