कोरबा(सेंट्रल छत्तीसगढ़)हिमांशु डिक्सेना:- हिन्दू परंपरा में बेहद पवित्र और अपने औषधीय महत्व के कारण पंचगव्य में से एक गाय के गोबर से गणेश की मूर्तियां बनाने की पहल कोरबा में शुरू की गई है। कोरबा के कटघोरा विकासखण्ड में धंवईपुर की जननी स्व सहायता समूह की महिलाओं ने ग़ोबर और मिट्टी के मिश्रण से इस तरह की मूर्तियां बनाई है। इन मूर्तियों में महिलाओं ने रासायनिक रंग की जगह में खाने वाले रंग का इस्तेमाल किया गया है। इस बार के गणेशोत्सव में श्रद्धालू इन मूर्तियों की स्थापना कर पूजन कर सकेंगे। बायोडिग्रेडबल होने के कारण ये मूर्तियां इको फ्रेंडली होंगी। घर के गमले या खेत में विसर्जित करने पर ये कंपोस्ट खाद में तब्दील हो जाएंगी। इस कारण धंवईपुर के जननी स्वसहायता समूह ने गणेश उत्सव जैसे पर्व को भी पर्यावरण संरक्षण का संदेश देने का जरिया बनाया है। हिंदू परंपराओं के अनुसार भगवान गणेश की गोबर की प्रतिमा में पंचतत्वों का वास माना जाता है और खासकर गोबर में महालक्ष्मी वास करती हैं। ऐसे में धंवईपुर में बनी गोबर गणेश की प्रतिमाओं के दर्शन से श्रद्धालुओं को विशेष आशीर्वाद मिल सकेगा और गोबर गणेश के दर्शन के लिए उन्हें मध्यप्रदेश के महेश्वर तक नहीं जाना पड़ेगा।
इस बार गणेश चतुर्थी 10 सितंबर को बड़े ही धूमधाम से गणपति बप्पा को घर-घर में स्थापित कर अगले दस दिनों तक पूजा-अर्चना चलेगी। भगवान गणेश की अराधना के इस उत्सव की तैयारियां जोरो पर है। बाजार में भी गणेश भगवान की रंग-बिरंगी मूर्तियां सजी हुई है। पर्यावरण के प्रति जागरूकता से पिछले कई वर्षों से इको फ्रेंडली गणपति की स्थापना का चलन बढ़ा है। हर कोई अपने घर-मंदिर में इको फ्रेंडली गणेश की मूर्ति की ही स्थापना करना चाहता है। इसका मकसद यही है कि इससे अपने तालाब और नदियों को प्रदूषित होने से बचाया सकें। धंवईपुर स्वसहायता समूह की महिलाओं ने गाय के गोबर से गणेश की मूर्ति बनाकर पर्यावरण संरक्षण के साथ इसे रोजगार का जरिया भी बना लिया है। गणेश भगवान की मूर्ति को ग़ोबर और मिट्टी के मिश्रण से बनाया गया है साथ ही इसमें खाने के रंग भरे गए हैं। जिससे यह पानी मे घुलने पर भी पानी को प्रदूषित नहीं करेगा। समूह की महिलाओं ने कोरोना महामारी के रोकथाम के लिए जिला प्रशासन के द्वारा जारी गाइडलाइन को भी ध्यान में रखते हुए गणेश जी की मूर्तियों को सिर्फ 1 फ़ीट ऊंचाई की ही बनाया गया है, जो घरों में आसानी से स्थापित हो सके।
समूह की एक सदस्य हिना महंत ने बताया कि बाजार में बनाए गए मूर्तियां ज्यादातर प्लास्टर ऑफ पेरिस की होती है जो पानी मे घुलती नही है साथ ही उसमें केमिकल युक्त कलर का इस्तेमाल होता है जिससे पर्यावरण को नुकसान होता है। हिना ने बताया कि ग़ोबर से बनाए गए गणेश जी को घर मे विसर्जित कर सकते हैं। विसर्जन के बाद बचे गोबर-खाद को खेत या गार्डन में डाल सकते है। समूह अन्य सदस्य फूलकुमारी मरकाम ने बताया कि अभी तक समूह की महिलाओं द्वारा 50 मूर्तियां बनाई गई थी जिसमे से 38 मूर्तियां बिक गई है। अभी केवल 12 मूर्ति ही बची हैं। फुलकुमारी ने बताया कि गोबर से बनी गणेश मूर्तियों को बेचकर महिलाओं को अच्छा आर्थिक लाभ हुआ है। मूर्ति बिक्री से एक-एक महिला को 3 से 4 हज़ार तक फायदा हुआ है।
गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ सरकार देश की पहली सरकार है, जिसने गोधन पर विशेष फोकस किया है। जननी महिला स्व सहायता समूह के क्लस्टर प्रभारी खगेश्वर निर्मलकर ने कहा कि सूबे के मुखिया श्री भूपेश बघेल की सोच के अनुरूप गोधन की उपयोगिता को बढ़ाने एक नवाचार के तहत महिला समूहों ने ग़ोबर से गणेश मूर्तियां बनाई है। जिससे उनको आर्थिक लाभ भी हो रहा है। ग़ोबर से बनाए गए गणेश जी की मूर्ति मार्केट में मिलने वाले गणेश जी से ये ज्यादा सुंदर दिखती है, इनका दाम भी कम है साथ ही वातावरण को प्रदूषित भी नही करेंगी।
मध्यप्रदेश में भी है गोबर गणेश की 900 साल पुरानी मूर्ति –
गौरतलब है कि मध्य प्रदेश के महेश्वर में एक ऐसा दक्षिण मुखी भगवान गणेश मंदिर है, जहां भगवान गणेश की गोबर की मूर्ति है। मंदिर में विराजमान यह गणेशजी की मूर्ति लगभग 900 साल पुरानी है। गोबर की मूर्ति होने की वजह से यह मंदिर गोबर गणेश के नाम से जाना जाता है। भगवान गणेश की मिट्टी और गोबर की प्रतिमा में पंचतत्वों का वास माना जाता है और खासकर गोबर में महालक्ष्मी वास करती हैं। इसलिए यह मंदिर भक्तजनों के बीच काफी प्रसिद्ध है। गोबर गणेश के दर्शन करने के लिए यहां हर रोज हज़ारों श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते हैं। विशेषकर नया साल, गणेश उत्सव और दीपावली के मौके पर भक्तों की भीड़ बढ़ जाती है। अपनी महिमा की वजह से यह मंदिर देश-विदेश में हर जगह चर्चित है। कटघोरा के जननी स्वसहायता समूह की महिलाओं द्वारा ग़ोबर से गणेश की मूर्ति बनाए जाने के बाद अब घरों में ही भक्तों को पंचतत्व से युक्त भगवान गणेश के दर्शन हो जाएंगे।