Election 2023 : कांग्रेस पार्टी ने पुरुषोत्तम कंवर पर दोबारा जताया भरोसा.. कटघोरा सीट पर कांग्रेस का दबदबा.. क्या BJP को यहां पर मिलेगी जीत?

कोरबा/कटघोरा 20 अक्टुबर 2023 ( सेंट्रल छत्तीसगढ़ ) : विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी घमासान शुरू हो चुका है। कांग्रेस पार्टी की दूसरी सूची जारी होने के बाद कटघोरा विधानसभा से वर्तमान विधायक पुरुषोत्तम कंवर को कांग्रेस पार्टी ने अपने प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतारा है। पुरुषोत्तम कंवर को पुनः कटघोरा विधानसभा से कांग्रेस पार्टी का टिकट मिलने से कांग्रेस कार्यकर्ताओं में खुशी की लहर है। कांग्रेस पार्टी से टिकट मिलने के बाद प्रत्याशी परुषोत्तम कंवर का जनसम्पर्क अभियान शुरू हो गया है। श्री कंवर सर्वप्रथम कटघोरा स्थित हनुमानगढ़ी (चकचकवा पहाड़ ) पहुंचे वहां उन्होंने भगवान श्रीराम के चरणों मे दंडवत प्रणाम कर आशीर्वाद लिया। साथ माता रानी के चरणों मे पुष्प अर्पित कर अपना जनसकम्पर्क अभियान का शुभारंभ किया।

कटघोरा सीट पर कांग्रेस का दबदबा, क्या BJP को यहां पर मिलेगी जीत?

बतादें की पुरुषोत्तम कंवर क्षेत्र क्रमांक 22 कटघोरा विधानसभा से कांग्रेस पार्टी के विधायक है उन्होंने 2018 के विधानसभा चुनाव में पूर्व विधायक व संसदीय सचिव लखनलाल देवांगन को भारी मतों से पराजित किया था। कटघोरा सीट पर सबसे ज्यादा समय तक कांग्रेस का दबदबा रहा है। सीट पर सबसे ज्यादा 6 बार चुनाव जीतने का रिकॉर्ड बोधराम कंवर के नाम है। 6 बार में से एक बार वह निर्दलीय (1972) में चुने गए। लेकिन इसके बाद वह कांग्रेस में शामिल हो गए और हर बार चुनाव जीतते रहे। छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले की अपनी खास राजनीतिक पहचान है। जिले की कटघोरा विधानसभा सीट भले ही सामान्य सीट है, लेकिन यहां पर आदिवासी उम्मीदवारों का खासा दबदबा है और हार-जीत पर काफी असर डालते हैं। कटघोरा विधानसभा सीट पर अभी कांग्रेस का कब्जा है।

कितने वोटर, कितनी आबादी

2018 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो कटघोरा सीट पर 10 उम्मीदवारों के बीच मुकाबला रहा. हालांकि यहां त्रिकोणीय मुकाबला दिखा। भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस और जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) के बीच कड़ा मुकाबला रहा। कांग्रेस के पुरुषोत्तम कंवर को चुनाव में 59,227 वोट मिले तो भारतीय जनता पार्टी के लखनलाल देवांगन को 47,716 वोट मिले। जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के उम्मीदवार के गोविंद सिंह राजपूत के खाते में 30,509 वोट आए. कांग्रेस के पुरुषोत्तम कंवर ने 11,511 मतों के अंतर से यह मुकाबला जीत लिया। तब के चुनाव में कटघोरा सीट पर कुल 1,97,527 वोटर्स थे जिसमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 1,01,055 थी तो महिला मतदाताओं की संख्या 96,467 थी। इसमें कुल 1,51,128 (78.0%) वोट पड़े. NOTA के पक्ष में 2,867 (1.5%) वोट डाले गए।

कटघोरा विधानसभा सीट पर कुल 2,05,961 वोटर्स हैं. इसमें पुरुष वोटर्स की संख्या 1,04,805 है जबकि महिला वोटर्स की संख्या 1,01,146 है. इनके अलावा 10 ट्रांसजेंडर भी वोटर्स हैं।

कैसा रहा राजनीतिक इतिहास

कटघोरा सीट के चुनावी इतिहास पर गौर करें तो 1990 के बाद से इस सीट पर ज्यादातर समय कांग्रेस का ही दबदबा रहा है। कांग्रेस ने 4 बार तो बीजेपी ने 3 बार जीत हासिल की है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद 2003 में जब यहां पर पहली बार चुनाव हुए तो कांग्रेस के बोधराम कंवर ही विजयी हुए। 5 साल बाद 2008 के चुनाव में भी बोधराम कंवर चुनाव जीतने में कामयाब रहे थे।

2013 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने लखनलाल देवांगन के दम पर यहां फिर से जीत हासिल की। उन्होंने 6 बार के विधायक बोधराम को हराया। कांग्रेस इस सीट पर आदिवासी कंवर समाज के लोगों को ही टिकट देती रही है। लेकिन 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने बोधराम कंवर की जगह उनके बेटे पुरुषोत्तम कंवर को टिकट दिया और वह चुनाव जीतने में कामयाब रहे। लखनलाल देवांगन दूसरे स्थान पर रहे।

बीजेपी प्रत्याशी प्रेमचंद्र पटेल क्या बना पाएंगे मतदाताओं की बीच अपनी जगह?

इस बार भारतीय जनता पार्टी ने जिला पंचायत सदस्य प्रेमचंद्र पटेल को कटघोरा विधानसभा से टिकट देकर अपना प्रत्यशी बनाया है। बतादें की प्रेमचंद्र पटेल बीजेपी के कार्यकर्ता रहे है, लेकिन कटघोरा विधानसभा में उनका जनाधार बिल्कुल न के बराबर है। हरदी बाज़ार क्षेत्र में उनकी स्थिति को ठीक बताया जा रहा है लेकिन विधानसभा के अन्य क्षेत्रों में प्रेमचंद पटेल का जनाधार बहुत कमजोर होना बताया जा रहा है। ऐसे में प्रेम चंद्र पटेल को बीजेपी ने जातिगत समुदाय के आधार पर टिकट देकर क्या सही निर्णय लिया है। यह लोगों के साथ साथ बीजेपी के कार्यकर्ताओं में एक चर्चा का विषय बना हुआ है। क्या बीजेपी प्रत्याशी प्रेमचंद्र पटेल कटघोरा विधानसभा में मतदाताओं के बीच अपनी जगह बना पांने में सफल हो पाएंगे।

सामाजिक-आर्थिक ताना बाना

कटघोरा सीट का बड़ा हिस्सा ग्रामीण क्षेत्रों से घिरा हुआ है। यहां का करीब 60 प्रतिशत इलाका कोयला खदान से जुड़ा हुआ है। एसईसीएल की ओर से कोयला खदान और बिजली संयंत्रों के लिए अधिग्रहित की गई जमीन पर पुनर्वास नीति से करीब 25 हजार किसान ज्यादा खुश नहीं हैं। कई लोगों को उचित मुआवजा तक नहीं मिल सका है. विस्थापित किसानों का संघर्ष आज भी जारी है।

कांग्रेस ने वादा किया था कि वह सत्ता में आने के कटघोरा को जिला बनाएगी लेकिन उसकी ओर से वादा पूरा नहीं किया गया। जबकि बीजेपी ने भी सत्ता में रहने के दौरान वादा किया था लेकिन पूरा नहीं किया गया। वैसे तो सीट सामान्य वर्ग के लिए लेकिन आदिवासी वोटर निर्णायक की भूमिका में रहता है। यहां पर करीब 70 प्रतिशत सामान्य और ओबीसी वर्ग के वोटर्स हैं तो करीब 30 प्रतिशत वोटर्स आदिवासी समाज के लोग हैं।