सरगुजा (सेंट्रल छत्तीसगढ़) : हर पांच साल में सत्ता बदलती रही. सरकार की तरफ से विकास के नए-नए वादे किए गए, लेकिन गांव की तस्वीर नहीं बदली. ग्रामीण अंचलों में रहने वाले आदिवासी आज भी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं. सड़क और पुलिया के आभाव में जीवन बसर कर रहे ग्रामीण अंचल के लोगों को मेडिकल इमरजेंसी के समय कई मुसीबतों का सामना करना पड़ता है. ऐसा ही एक मामला सरगुजा से सामने आया है. यहां एक प्रसूता को महतारी एक्सप्रेस तक पहुंचाने के लिए कांवड़ के सहारे नदी पार कराना पड़ा.
गर्भवती महिला सचिता को अचानक प्रसव पीड़ा शुरू हुई तो उन्होंने महतारी एम्बुलेंस को फोन लगाकर मदद मांगी थी जिसके बाद महतारी एम्बुलेंस तो गांव के लिए निकली, लेकिन नदी किनारे जाकर रुक गई जिसके बाद महिला को कांवड़ में लादकर परिजन ने उफनती घुनघुट्टा नदी को पार किया और दर्द से तड़पती महिला को बतौली के स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती करवाया गया.
कांवड़ के सहारे प्रसूता को कराया गया नदी पार
गांव में नहीं है सड़क और पुल
मैनपाट के पहुंचविहीन क्षेत्रों से ऐसी तस्वीरें आना आम बात है. लगभग डेढ़ हजार की आबादी वाले इस गांव में आज तक ना ही सड़क का निर्माण हुआ और ना ही पुल बन पाया है. ऐसे में ग्रामीणों को बारिश के मौसम में भारी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है. सबसे ज्यादा मुसिबत तो तब होती है जब गांव में कोई व्यक्ति बीमार पड़ता है.
आए दिन बीमार ग्रामीणों को झेलेगी में लादकर अस्पताल तक पहुंचाया जाता है. हाल ही मे ऐसी ही एक तस्वीर सामने आई थी. मंत्री अमरजीत भगत ने कलेक्टर और अन्य अधिकारियों को इस तरह की घटना दोबारा न होने के निर्देश दिए थे. अमरजीत भगत ने कहा था कि गर्भवती महिलाओं की पहचान कर उन्हें समय से पहले ही अस्पताल में भर्ती कराया जाए.
नदी पर पुल बनाने की मांग
कदनई ऐसा गांव है जो एक तरफ पहाड़ और दूसरी तरफ घुनघुट्टा नदी से घिरा हुआ है. कई साल के ग्रामीण यहां पुल बनवाने की मांग कर रहे हैं, लेकिन ग्रामीणों की इस मांग पर कभी ध्यान नहीं दिया गया. ग्रामीणों का कहना है कि नदी पर पुल बनने से वे आसानी से बतौली तक पहुंच सकेंगे. इसके साथ ही ग्रामीण कहते हैं कि उनके द्वारा पहाड़ों पर कच्ची सड़क बनाई गई है जिसे अगर पक्की करवा दी जाए तो वे सड़क मार्ग से मैनपाट तक पहुंच सकते हैं और जरूरत पड़ने पर एम्बुलेंस की मदद भी मिल सकेगी.
गांव में विकास की गति बेहद धीमी
सरकार भले ही स्वास्थ्य और शिक्षा गांव-गांव तक पहुंचाने के दावे कर रही है, लेकिन हकीकत में आज भी ऐसे कई गांव हैं, जहां न जाने कितने ही लोग बीमारी की हालत में पैदल चलकर अस्पताल जाने को मजबूर हैं. कई ऐसे गांव हैं जहां स्वास्थ्य सुविधाएं राज्य बनने के 20 साल बाद भी नहीं पहुंच पाई है.