एक चमत्कारिक सिध्द शिला, जिसके दर्शन मात्र से लोगों की मनोकामनाऐं होती हैं पूरी

शशिकांत डिक्सेना / छत्तीसगढ़ –

कहते हैं मानों तो देवता और ना मानों तो पत्थर। ये कहावत तो आपने भी सुनी होगी, क्योंकि धर्म में आस्था रखने वालों के लिये पत्थर में भी भगवान बसते है।चमत्कार पत्थर नहीं करता ,चमत्कार उस पत्थर के प्रति लोगों की श्रध्दा और विश्वास से होते है।

आज हम ऐसे ही एक सिध्द चमत्कारी शिला और आश्रम की जानकारी लेकर आये है जहां लाखों से ज्यादा श्रध्दालू आस्था और विश्वास के साथ आते है और अपनी मुंहमांगी मुराद पूरी करके जाते है। जी हां छत्तीसगढ के बिलासपुर जिले के अंतर्गत मात्र 45 किलोमीटर दुर, बेलगहना रेल्वे स्टेशन के ठीक पीछे पहाडी की चोटी पर स्थित है सिध्द आश्रम। यह आदिकाल से ऋषि मुनियों की तपो स्थली रही है। पहाडी पर स्थित सिध्द बाबा का प्राचीन मंदिर और इस मंदिर में श्रीफल से घिरी एक शिला जो पहाडी के गर्भ से निकली है, लोगों की आस्था और श्रध्दा का केंद्र बिंदु है। लोग इसे सिध्द बाबा आश्रम के नाम से पुकारते है। हजारों और लाखों की संख्या में भक्तों का रेला रेलमार्ग और बस से यहां सिध्द बाबा के दर्शन करने आता है। सैकडों सिढियां चढकर श्रध्दालू मंदिर पहुंच, सिध्द बाबा के दर्शन करते है। पहाडी पर पहुंचकर सिध्द बाबा के दर्शन मात्र से चित्त शांत हो जाता है मानों यहां आकर सारी समस्याऐं ही दूर हो गई हो।
भक्तों और स्थानीय लोंगों की माने तो यह शिला स्वयंभू है आज से पचास साल पहले इस शिला की उचाई मात्र चार से पांच इंच ही थी लोगों के देखते देखते ही यह अदभूत शिला चमत्कारिक रुप से ना केवल अपने आकार में बढती गई वरन लोगों की आस्था और विष्वास भी बढता गया। आज इस शिला की उंचाई लगभग पांच से छह फीट है और लोगों की माने तो यह अदभूत शिला भूगर्भ से उपर की ओर बढती ही जा रही है पहाडी की चोटी पर स्थापित मंदिर में बंदन के लेप और श्रीफल से धिरे इस शिला के प्रति लोगों की आस्था देखते ही बनती है। लोगों की आस्था और पूरी होती मनोकामना ने इस शिला को सिध्द बाबा का नाम दे दिया और आश्रम सिध्द बाबा आश्रम के नाम से जाना जाने लगा।
श्रीफल से धिरे इस शिला को देखकर आप भी एक बार भौंचक्के रह जायेंगे क्योकि यह शिला कोई साधारण शिला नहीं है इस शिला में लोगों की आस्था और विश्वास की आत्मा बसती है और चंद फुल एक नारियल और अगरबत्ती के चढावे मात्र से यहां लोगों की मनोकामनाऐं पुरी होती है।
जानकार लोगो की माने तो यहां प्राचीन मंदिर में विराजे सिध्द बाबा की प्रतिमा जिसे लोग दक्षिणमुखी हनुमान जी के नाम से पुजते है। उनके कथनानुसार ब्रम्हलीन हुए स्वामी जी के दवारा बताया जाता था कि सालों पहले यहां केवल जंगल हुआ करता था तब यहा एक साधु निवास करते थे भिक्षाटन के लिये नीचे बस्ती जाते और फिर पहाउी पर बनी कुटिया में वापस आ जाते थे। उस दौरान बियाबान घनघोर जंगल हुआ करता था और शाम के बाद लोग घरों से नहीं निकलते थे। लेकिन कुछ दिनों से साधु के भिक्षाटन के लिये बस्ती नहीं आने पर, बस्ती के लोगों ने पहाडी पर जाकर देखा तो उन्हें साघु की कुटिया के निकट जलती धूनी, एक चिमटा और त्रिषुल मिला। लेकिन साधु दुर दुर तक तलाश करने पर भी कहीं नहीं मिला। पहाडी पर त्रिशूल और चिमटा मिलने की खबर गांव में आग की तरह फैल गई लोंगों नें आस्था और विश्वास के साथ उसकी पूजा करने लगे। पहाडी के नीचे की गई पूजा और मांगी मूराद पूरा होने से लोगों की श्रध्दा बढती ही गई। चिमटा,त्रिशूल और धुनी वाले स्थान पर एक छोटा सा मंदिर बनाया गया।
कहते हैं बरसों पहले एक साधु की तपोस्थली जहां की जलती धुनी आज भी निरंतर प्रज्जवलित हो रही है सिध्द शिला के निकट त्रिशुल और चिमटा आज भी विदमान है।
*चमत्कारों का सिलसिला,,,,,,*
यहाँ का दर्शन कर लौटने वाले लोगो के अनुसार इस मंदिर में रोजाना नए नए चमत्कार होते रहते है। जिसके कारण यहां निरंतर भक्तो की भीड़ बढ़ती ही जा रही है।यहां पहुचने वाले लोगो की मुरादे अधूरी नही रही। ऐसा कहा जाता है। जिसके कारण ये जगह आस्था व विश्वास का केंद्र बन गया है।