कोरबा। आखिर क्यों कोरबा शहर के लोगों का गुस्सा कांग्रेस और पूर्व मंत्री जय सिंह अग्रवाल के खिलाफ है। इसका सीधा सा जबाव है कि 2014 से पूर्व मंत्री जय सिंह अग्रवाल का नगर निगम पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप से कब्जा रहा है। लोगों को लगता है कि निगम में काम कम भ्रष्टाचार ज्यादा हुआ है।
प्रदेश में पिछली कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में महापौर का अप्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव कराकर धनबल और सत्ता के बल पर अपनी पसंद के महापौर बना दिए गए थे। राज्य में और शहर में कांग्रेस की सरकार होने से विकास को गति मिलने की उम्मीद की जा रही थी लेकिन हुआ इस अपेक्षा का उलट ही। जनता ने पूर्व मंत्री जय सिंह अग्रवाल के खिलाफ विधानसभा में मत देकर अपनी मंशा जता दी थी। अब जनता निगम के चुनाव में भी अपना हिसाब-किताब बराबर करने के मूड में दिख रही है।
वर्ष 2014 में कोरबा में कांग्रेस ने परिवारवाद की नींव डालते हुए तत्कालीन विधायक जयसिंह अग्रवाल की धर्मपत्नी और गृहिणी श्रीमती रेणु अग्रवाल को चुनाव मैदान में उतार कर जीत हासिल की थी। यहीं से भ्रष्टाचार की नई इबारत लिखी गयी। निगम में सफाई ठेके और निर्माण कार्य के ठेकों में करोड़ों रुपयों का घोटाला किया गया। जिसकी शिकायत एसीबी और सीएम से भी की गयी थी। कांग्रेस की राज्य सरकार के समय ये मामले दबा दिए गए थे, लेकिन भाजपा की सरकार आने के बाद जांच तेज हुई तो सफाई ठेकेदारों को करोड़ों रुपयों के अनियमित भुगतान की पुष्टि हो चुकी है।
पिछले निगम चुनाव में पार्षदों की कम संख्या के बाद भी सत्ता की ताकत से कांग्रेस अपना महापौर बनवाने में सफल रही । लेकिन निवृतमान महापौर राजकिशोर प्रसाद पूर्व मंत्री के रबर स्टॉम्प की तरह ही काम करते रहे। कांग्रेस के महापौर पर कमीशनखोरी के आरोप लगे। यहां तक कि डामर की 10 करोड़ रुपये से बनी सड़क महीने भर में ही उखड़ गयी। 11 करोड़ रुपये की लागत से संवारी गयी अशोक वाटिका भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गयी। वहीं सीएसईबी से ध्यानचंद चौक तक बनी करोड़ों की फोरलेन सड़क में कांग्रेसी ठेकेदार ने ऐसा भ्रष्टाचार किया कि बनते ही सड़क में दरार आ गयी लेकिन निगम की कांग्रेस सरकार ने कार्रवाई तो की गयी उल्टे भुगतान भी कर दिया।
कांग्रेस के 10 सालों के कार्यकाल में राखड़ से पूरे शहर को पाटकर प्रदूषित कर दिया गया है। महापौर राजकिशोर प्रसाद का जाति-प्रमाण पत्र फर्जी साबित होने के बाद भी उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई और आरक्षण का मजाक बनाते हुए महापौर ने अपना कार्यकाल भी पूरा कर लिया।
लोगों में इस बात को लेकर सबसे ज्यादा आक्रोश है कि एक व्यक्ति विशेष ने 10 सालों तक निगम को अपनी जागीर समझा और पार्षद एवं महापौर शहर के बजाय उस व्यक्ति के लिए काम करते नजर आए।