कोरबा : भगवान श्रीकृष्ण के साथ हमेशा देवी राधा का नाम आता है, परंतु मुख्य पटरानी रूखमणी बनी – पंडित चंद्रहास त्रिपाठी

कोरबा ( सेन्ट्रल छत्तीसगढ़ ) :- उद्गार भागवताचार्य त्रिपाठी जी ने भागवत में कही, एवम कृष्ण रूखमणी विवाह का सारा वृतांत अपने मधुर वाणी में भक्तो को सुनाया कि -भगवान श्रीकृष्ण के साथ हमेशा देवी राधा का नाम आता है भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी लीलाओं में यह भी दिखाया था कि राधा और श्रीकृष्ण दो नहीं बल्कि एक हैं। लेकिन देवी राधा के साथ श्रीकृष्ण का लौकिक विवाह नहीं हो पाया। देवी राधा के बाद भगवान श्रीकृष्ण की प्रिय देवी रुक्मणी हुईं। देवी रुक्मणी और श्रीकृष्ण के बीच प्रेम कैसे हुआ इसकी बड़ी अनोखी कहानी और इसी कहानी से प्रेम की एक नई परंपरा की शुरुआत भी हुई ।
देवी रुक्मिणी विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री थी। रुक्मिणी अपनी बुद्धिमता, सौंदर्य और न्यायप्रिय व्यवहार के लिए प्रसिद्ध थीं। रुक्मिणीजी का पूरा बचपन श्रीकृष्ण की साहस और वीरता की कहानियां सुनते हुए बीता था। जब विवाह की उम्र हुई तो इनके लिए कई रिश्ते आए लेकिन इन्होंने सभी को मना कर दिया। इनके विवाह को लेकर माता पिता और भाई रुक्मी चिंतित थे।


एक बार एक पुरोहित जी द्वारिका से भ्रमण करते हुए विदर्भ आए। विदर्भ में उन्होंने श्रीकृष्ण के रूप गुण और व्यवहार के अद्भुत वर्णन किया। पुरोहित जी अपने साथ श्रीकृष्ण की एक तस्वीर भी लाए थे। देवी रुक्मिणी ने जब तस्वीर को देखा तो वह भवविभोर हो गईं और मन ही मन श्रीकृष्ण को अपना पति मान लिया।


श्रीकृष्ण ने भी रुक्मिणी के बारे में काफी कुछ सुन रखा था और वह उनसे विवाह करने की इच्छा रखते थे। जब उन्हें रुक्मिणी का प्रेमपत्र मिला तो प्रेम पत्र पढ़कर श्रीकृष्‍ण को समझ आया कि रुक्मिणीजी संकट में हैं। उन्‍हें संकट से निकालने के लिए श्रीकृष्‍ण ने अपने भाई बलराम के साथ मिलकर एक योजना बनाई। जब शिशुपाल बारात लेकर रुक्मिणीजी के द्वार आए तो श्रीकृष्‍ण ने रुक्मिणीजी का अपहरण कर लिया। रुक्मिणी के अपहरण के बाद श्रीकृष्ण ने अपना शंख बजाया। इसे सुनकर रुक्मी और शिशुपाल हैरान रह गए कि यहां श्रीकृष्ण कैसे आ गए। इसी बीच उन्हें सूचना मिली की श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी का अपहरण कर लिया है। क्रोधित होकर रुक्मी श्रीकृष्ण का वध करने के लिए उनसे युद्ध करने निकल पड़ा था। रुक्मि और श्रीकृष्ण के मध्य युद्ध हुआ था जिसमें कृष्ण विजयी हुए और रुक्मिणी को लेकर द्वारिका आ गए। तत्पश्चात उनका विवाह हुआ.
उक्त कथा श्रीमद भागवत ज्ञान सप्ताह यज्ञ में हुआ जिसका आयोजन वार्ड क्रमांक 3 में ग्राम डूडगा निवासी सेवानिर्वित शिक्षक लल्लू डिक्सेना द्वारा अपने स्वर्गीय पिता श्री बंशीलाल डिक्सेना एवम स्वर्गिया माता श्रीमती श्याममति डिक्सेना एवम पूर्वजों के स्मृति में उनके मोक्षांतरगत किया जा रहा है, जिसमे उनके परिवार जन एवम समस्त धर्म प्रेमी भागवत सुनने का पुण्यलाभ प्राप्त कर रहे हैं।।