पाली : सावन का पहला सोमवार : प्राचीन शिव मंदिर में पूजा के लिए श्रद्धालुओं का दिनभर लगा रहा तांता.. बम बम भोले के नारों के साथ माहौल हुआ धर्ममयी.

कोरबा(सेंट्रल छत्तीसगढ़)हिमांशु डिक्सेना :- सावन के पहले सोमवार पर कोरबा जिले के मंदिरों में हर-हर महादेव के जयकारे से घूंज उठे. कोरबा जिले के पाली स्थित प्राचीन शिव मंदिर में आज सुबह 4 बजे से ही भक्तों की भीड़ भोलेनाथ के दर्शनों के लिए उमड़ पड़ी. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सोमवार का दिन भोले शंकर को समर्पित होता है. इस दिन विधि- विधान से भगवान शंकर की पूजा- अर्चना की जाती है।सावन माह भोले शंकर को अतिप्रिय होता है. शिव जी को प्रसन्न करने के लिए शिवलिंग की पूजा- अर्चना की जाती है। शिवलिंग पर कुछ चीजें अर्पित करने से शिवजी की विशेष कृपा बरसती है।

मान्यता है कि सावन में जो भी भक्त शिव जी की पूजा व व्रत रखता है, उसकी सभी मनोकामनाएं अवश्य पूरी होती हैं। इस बार सावन 14 जुलाई से शुरू हुआ है, जो 12 अगस्त तक चलेगा। सावन को श्रावण महीना भी कहा जाता है। इस महीने में पड़ने वाले सोमवार व्रतों का भी विशेष महत्व होता है। सावन में कुल चार सोमवार पड़ेंगे। ऐसे में भगवान भोलेनाथ को जल चढ़ाने और विधिवत पूजा अर्चना करने वाले भक्तों को अपार सुख समृद्धि मिलेगी। व्रत रखने वालों पर विशेष कृपा बरसेगी।

छत्तीसगढ़ की सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक पाली स्थित शिव मंदिर

पाली शहर कोरबा जिले का एक तहसील मुख्यालय है, जो की बिलासपुर कोरबा मुख्य मार्ग (हाइवे) पर जिला मुख्यालय से करीब 50 km. की दूरी पर स्थित है। ऐसी मान्यता है, कि पाली नगर राजा विक्रमादित्य की पूजा स्थल हुई करती थी। राजा विक्रमादित्य जो की एक बन्ना राजवंश शासक था, उनके द्वारा पाली में एक प्राचीन काल में शिव मंदिर का निर्माण कराया गया था, जो आज भी एक बड़े तालाब के किनारे पर स्थित है। जहां पर कई अन्य अवशेष भी देखा जा सकता हैं। मना जाता है कि यह मंदिर अब पूर्व की दिशा में आ गया है। तथा इसकी आंत अष्टकोणीय रूप में है। साथ इस प्राचीन शिव मंदिर की चौड़ाई 5 प्लेटफार्मों पर है।

इस प्राचीन मंदिर पर खुदी हुई मूर्तियों के कारीगिरी अर्थात् आर्किटेक्चर अबु पहाड़ियों के जय मंदिरों एवं सोहगपुर में स्थित मंदिरों के समान हैं, साथ ही यह खजुराहो के विश्व प्रसिद्ध मंदिर जैसा भी दिखाई पड़ता है। राजा विक्रमादित्य को राजा महामंडलेश्वेर मालदेव के पुत्र ‘जयमेयू’ के नाम से भी जाना एवं पहचाना जाता है इस मंदिर को लगभग 870 ई. में बनाया गया था। 11 वीं एवं 12 वीं शताब्दी में राजा जाजलवा देव प्रथम कलचुरी शासक के द्वारा मरम्मत कराई गई थी। जिनका नाम भी मंदिर पर बना हुआ है।

इस मंदिर के प्रवेश द्वार के पास स्थित तालाब में नौ कोने हैं। साथ ही इस तालाब में साल भर पानी भरा हुआ पाया जाता है। जब यहां पर पुरातात्विक विभाग द्वारा तालाब के सीमा पर दीवार बनाने के उद्देश्य से इस जगह का उत्खनन किया, तब यहाँ दो मूर्तियां एवं दो सिक्के भी मिले थे।

पाली से केवल 30. की दूरी पर बसा है छत्तीसगढ़ की कश्मीर

यहां से करीब 30 km. की दूरी छत्तीसगढ की कश्मीर कही जाने वाली चैतुरगढ़ स्थित है। जी हां पाली से महज 20 km. की ही दूरी पर विशाल घने जंगलों के बीच में करीब 3060 फीट की ऊंचाई पर पहाड़ी पर बसा हुआ है चैतुरगढ़। साथ ही इस जगह को छत्तीसगढ़ राज्य की कश्मीर की भी संज्ञा दी गई है, इसे यह नाम यहां आने वाले पर्यटकों द्वारा ही दिया गया है। जिसका निर्माण कल्चुरी वंश के शासक पृथ्वीदेव प्रथम के द्वारा करवाया गया था। साथ ही इस जगह पर आज भी पुरातात्विक इतिहास के अवशेष दिखाई पीडीटीई है एवं आज भी यहां मौजूद हैं। चैतुरगढ़ की पूरी पोस्ट के लिए क्लिक करे-

पाली के शिव मंदिर कैसे पहुंचें :

हवाई मार्ग द्वारा : रायपुर में स्थित स्वामी विवेकानन्द अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से करीब 200 km. की दूरी पर स्थित है। तथा बिलासपुर चकरभाठा हवाई अड्डे से करीब 60 km. की दूरी पर स्थित है।

रेल मार्ग द्वारा : बिलासपुर रेलवे स्टेशन से करीब 55 km. की दुरी पर एवं कोरबा रेलवे स्टेशन से करीब 50 km. की दूरी पर स्थित है।

सड़क मार्ग द्वारा : बिलासपुर बस स्टैंड से करीब 55 km. एवं कोरबा बस स्टैंड से करीब 50 km. की दूरी पर स्थित है । अतः यहां आप अपने किसी भी साधन मोटर साइकिल, या चार पहिया वाहनों के सहारे आसानी से आ सकते है।