विधायक मोहितराम केरकेट्टा ने राष्ट्रपति के दत्तक पुत्रों को लेकर कही ये बात..दत्तक पुत्रों को भी नौकरी पाने का हक.. आवास का लाभ लेने से हो रहे वंचित.

रायपुर(सेंट्रल छत्तीसगढ़) : छ्त्तीसगढ़ शासन राजभाषा आयोग द्वारा “आदिवासी समाज की दशा दिशा” के तहत तीन दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन रायपुर स्थित शहीद स्मारक परिसर आडिटोरियम में हो रहा है। आज संगोष्ठी के दूसरे दिन राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले पंडो, कोरवा, बिरहोर जनजाति की दशा पर मुख्यमंत्री अधोसंरचना उन्नयन एवं विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष व पाली तानाखार विधायक मोहितराम केरकेट्टा ने कहा कि राष्ट्रपति के दत्तक पुत्रों की स्थिति आज काफी दयनीय होती जा रही है। कोरबा जिले के साथ साथ पूरे छ्त्तीसगढ़ में इन दिनों प्रदेश की संरक्षित जनजातियाँ सुरक्षा के अभाव में जीवनयापन कर रही है,और केंद्र सरकार की अनदेखी का ही परिणाम है कि राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहलाने वाली संरक्षित जनजातियाँ आज छत्तीसगढ़ से आहिस्ता-आहिस्ता विलुप्त होती जा रही है जनकारी हो कि छत्तीसगढ़ प्रदेश में कुछ विशेष जनजातियों को विलुप्त होने से बचाने राष्ट्रपति का “दत्तक पुत्र” घोषित किया गया था। लेकिन इनके जीवन मे अब तक कोई सुधार नही हो पा रहा है।

श्री केरकेट्टा ने कहा कि छत्तीसगढ़ राज्य बाहूल्य जनजातियाँ से भरा राज्य है।अतः इस प्रदेश में लगभग 42 जनजातियाँ पाई जाती है। छत्तीसगढ़ राज्य की प्रमुख जनजाति गोंड़ है। इसके अतिरिक्त अन्य जातियों में कँवर, बिंझवार,भैना, भतार,उरांव,मुंडा,कमार, हल्बा,बैगा, भरिया,नगेशिया,मंझावर,खैरवार, और धनवार जाति भी काफ़ी बड़ी संख्या में है। लेकिन छत्तीसगढ़ में पांच ऐसी जातियाँ है जिन्हें विशेष रूप से पिछड़ी जनजातियों को एक समुदाय में शामिल करके एक विशिष्ट पहचान दिया गया है। ये जातियाँ है,अबुझमाड़िया,कमार, पहाड़ी कोरवा, बिरहोर एवं बैगा और इनके विकास के लिए प्राधिकरण का गठन भी किया गया है और उनके द्वारा कई योजनाएं भी चल रही है और इन योजनाओं के लिए केंद्र सरकार की अनदेखी से इन जनजातियों तक कुछ पहुँच ही नहीं रहा। यह भी विडंबना है कि सरकार के संरक्षण के बाद भी ये संरक्षित जनजातियाँ लगातार विलुप्तता के कगार पर पहुंच रही हैं।अगर एक रिपोर्ट पर गौर करे तो विशेष संरक्षित जनजातियों में बिरहोर सबसे ज्यादा खतरे में है,तक़रीबन सन 2001 में इनकी आबादी लगभग 3000 के करीब थी जो घट कर 2500 के आस-पास पहुंच चुकी है। इतना ही नही बिरहोर के साथ ही पहाड़ी कोरवा, पंडो, और अबुझमाड़िया की जनसंख्या में भी लगातार हो रही गिरावट चिंता का विषय है।इल्म हो कि संरक्षित जनजातियों में शामिल बैगा आदिवासियों की संख्या 10 साल पहले 71 हज़ार के क़रीब थी जो अब सिमट कर 42 हज़ार के करीब बची है। कमार जनजातियाँ भी इसी तरह से लगातार घटने के कगार पर निरंतर चलायमान है।

दत्तक पुत्रों को मिले सरकारी नौकरी..और मिले आवास की योजना का लाभ

संगोष्ठी को संबोधित करते हुए श्री केरकेट्टा ने कहा कि विशेष जनजाति के लोगों को भी शासकीय नौकरी पाने का हक है आज कोरवा, पंडो, बिरहोर तथा अन्य विशेष जनजाति के युवा पीढ़ी शिक्षा को लेकर जागरूक हो रहे हैं उन्हें भी शासकीय नौकरी में सरकार को विशेष स्थान देने की आवश्यकता है जिससे इनका विकास हो सके साथ ही प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ लेने से भी वंचित हो रहे इन जनजाति के लोगों को आज भी जंगल में झोपड़ी में रहने को मजबूर होना पड़ रहा है। प्रधानमंत्री आवास को लेकर शासन को आगे आना होगा जिससे ये पक्के मकान में रह सकें।