रायपुर में गुमनाम लाशों को दफनाने के लिए जमीन की किल्लत, अधिकारी झाड़ रहे मामले से पल्ला…


रायपुर (सेंट्रल छत्तीसगढ़):-
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में मिलने वाली अज्ञात लाशों के कफन दफन के लिए अब कब्र के लिए जगह की कमी हो गई है. जगह की कमी होने से लावारिश लाशों को दफ्न करने की मुसीबत भी बढ़ गई है. शहर से लगे जोरा स्थित पुराने कब्रिस्तान के 60 डिसमिल क्षेत्र में दो हजार से अधिक लाशें दफ्न है. हालांकि प्रशासन ने नए कब्रिस्तान के लिए 80 डिसमिल जगह तो अलॉट कर दी. लेकिन यहां पर बाउंड्रीवाल और फिर आधे हिस्से में पानी भर जाने से लाशों को दफनाने वाली जगह की किल्लत हो गई है.

स्वयं सेवी संस्था के भरोसे कब्रिस्तान

नए कब्रिस्तान की जिम्मेदारी एक स्वयं सेवी संस्था के हाथ में है. पुराने कब्रिस्तान की भी जिम्मेदारी उसी संस्था मोक्ष को सौंपी गई है. जानकारी के मुताबिक नए कब्रिस्तान में गड्डा खोदना भी मुश्किल है. क्योंकि जरा सी बारिश में पानी भर जाता है. अभी तक नए कब्रिस्तान में 300 से ज्यादा लाशों को दफन किया गया है. बावजूद इसके प्रशासन की ओर से कब्रिस्तान के लिए खुली जगह देने के बाद और कोई दूसरी सुविधाएं मुहैया नहीं कराई गई है. चारों तरफ से खुले कब्रिस्तान में मवेशी कब्र को नुकसान पहुंचा रहे हैं. अब अज्ञात शवों की कब्र को कुत्तों से भी डर है.

कफन दफन के खर्च से बढ़ाई दूरी

पुलिस विभाग की ओर से अज्ञात लाशों के कफन दफन के लिए 2000 खर्च का प्रावधान है. लेकिन पुलिस को यह राशि नहीं मिल रही है. खुद मेकाहारा पुलिस चौकी कफन दफन के खर्च से परेशान हैं. कई बार देखा गया है कि जब अज्ञात शव का पोस्टमार्टम होने के बाद उनका अंतिम संस्कार भी स्वयंसेवी संस्था के भरोसे छोड़ दिया जाता है.

एक भी शव की नहीं हो पाई शिनाख्त

रायपुर जिले में ढाई से 3 साल में ही लगभग 2000 से अधिक लाशों का कफन दफन किया गया है. दिलचस्प यह है कि जिन लाशों को दफनाया गया है. रायपुर पुलिस उनमें से एक भी शव की शिनाख्त नहीं कर पाई है या फिर यह भी कह सकते हैं कि लॉकडाउन में लॉ एंड ऑर्डर की व्यस्तता के चलते अज्ञात मामलों में छानबीन पूरी तरह से ठप रही. अज्ञात लोगों के वारिस नहीं मिलने की वजह से लंबे अरसे बाद शव की पहचान करना भी अब मुश्किल है.

जिम्मेदार ओढ़ रखे हैं खामोशी का लबादा

वहीं इस मामले को लेकर जिम्मेदार अधिकारी खामोश हैं. नगर निगम और पुलिस अधिकारियों से जब हमने इस मामले में बात करने की कोशिश की तो कुछ भी बोलने के लिए तैयार नहीं थे. अधिकारियों की यह खामोशी अब कहीं ना कहीं सवाल भी पैदा कर रही है. क्योंकि गुमनाम लाशों की देखरेख की जिम्मेदारी इन्हीं के कंधों पर हैं.