स्कूल खोलने के मामले में सरकार ने झाड़ा पल्ला, जनप्रतिनिधियों और पलकों पर छोड़ी जवाबदारी

रायपुर(सेंट्रल छत्तीसगढ़) : राज्य सरकार ने कैबिनेट मीटिंग में स्कूल-कॉलेज खोलने को लेकर चर्चा की थी. प्रदेश में 2 अगस्त से स्कूल और कॉलेज खोल दिए जाएंगे.कक्षा 10वीं और 12वीं के कक्षाएं 02 अगस्त से शुरू होंगी. कक्षाओं का संचालन विद्यार्थियों की 50% उपस्थिति के साथ किया जाएगा. हालांकि इसे लेकर कोई गाइडलाइन जारी नहीं की गई है. शासन के लिए गए फैसले में इस बात का जिक्र किया गया है कि स्कूल खोलने से पहले वहां की ग्राम पंचायत ओर पार्षदों सहित पालकों से सहमति लेना अनिवार्य है. जनप्रतिनिधियों और पालकों की सहमति के बाद ही स्कूल खोले जा सकेंगे. इसे लेकर विपक्ष सहित पालकों ने अपनी आपत्ति दर्ज कराई है.

स्कूल खोलने के मामले में सरकार ने झाड़ा पल्लापालकों का कहना है कि करोना काल में स्कूल खुलेंगे या नहीं इसका निर्णय राज्य सरकार को लेना चाहिए, ना कि जनप्रतिनिधि को. सभी पालक यही मानते हैं कि उनके बच्चे की जान से बढ़कर और कुछ नहीं है. कोरोना काल में वे चाहे स्कूल खुले या ना खुले, अपने बच्चों को नहीं भेजना चाहते हैं. पालक यह भी आरोप लगाते नजर आए कि राज्य सरकार ने यह निर्णय कहीं ना कहीं स्कूल के दबाव में लिया गया है. स्कूल प्रबंधन के लगातार यह कह रहा है कि शिक्षकों को वेतन देना है. स्कूल के मेंटेनेंस पर भी खर्च करना पड़ रहा है. यह वजह है कि राज्य सरकार उनके दबाव में आकर स्कूल खोलने का निर्णय लिया है. अब कही न कहीं सरकार अपनी जवाबदारी से पल्ला झाड़ रही है.

विपक्ष ने सरकार पर साधा निशाना

विपक्ष ने भी कोरोना काल में स्कूल खोलने को लेकर राज्य सरकार पर जोरदार हमला बोला है. भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता गौरीशंकर श्रीवास का कहना है कि यह सरकार किसी भी तरह का निर्णय लेने में नाकाम रही है. यह सिर्फ कलेक्टर और उच्च अधिकारियों के निर्णय के आधार पर काम कर रही है. इनका खुद का कोई निर्णय नहीं होता है. स्कूल खोले जाने के मामले में भी राज्य सरकार ने अपना पल्ला झाड़ लिया है. सरकार नीचे के जनप्रतिनिधियों को बलि का बकरा बना रही है यदि कल को कोई भी घटना घटित होती है तो उनके ऊपर सारी जवाबदारी मढ़ दी जाएगी.

सरकार नहीं झाड़ रही पल्ला

कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता सुशील आनंद शुक्ला का कहना है कि सरकार स्कूल के मामले में अपना पल्ला नहीं झड़ना चाहती, बल्कि सरकार ने ही स्कूल खोलने का निर्णय लिया है. दसवीं-बारहवीं की कक्षाएं छात्रों के भविष्य को देखते हुए काफी महत्वपूर्ण होती है. संक्रमण दर कम होने के बाद सरकार ने स्कूल खोलने का निर्णय लिया है. इसके लिए भी कई गाइडलाइन जारी की गई है. जनप्रतिनिधियों और पालकों की सहमति को लेकर सवाल है तो यह निर्णय लिया गया है कि यदि क्षेत्र का कोई बच्चा संक्रमित हो या किसी तरह की परेशानी हो तो वह स्कूल ना आए, जिससे दूसरे बच्चे इससे प्रभावित ना हो सके. इसकी निगरानी की जवाबदारी उन्हें सौंपी गई है.

बहरहाल सरकार ने अपना निर्णय सुना दिया है अब देखने वाली बात है कि आने वाले समय में स्कूल प्रबंधन सरकार के इस निर्णय का क्रियान्वयन कैसे करता है. किन नियमों का पालन किया जाता है और किन नियमों की अनदेखी होगी. यह आने वाले समय में स्पष्ट हो सकेगा. वर्तमान में कोरोना की परिस्थिति को देखते हुए यह जरूर है कि अधिकतर पालक अपने बच्चों को स्कूल भेजने से कतराएंगे.