कोरबा (सेन्ट्रल छत्तीसगढ़ ): मंत्रालय में हुई डीपीसी में आज धमेंद्र छवई और वायपी सिंह को आईपीएस अवार्ड के लिए कमेटी ने हरी झंडी दे दी। दोनों अधिकारियों का नाम भारत सरकार को भेज दिया गया। वहां से अब नोटिफिकेश्न जारी होगा। उसके बाद उन्हें आईपीएस अवार्ड हो जाएगा। यानी अब सिर्फ आईपीएस अवार्ड की औपचारिका बाकी है।
मंत्रालय में हुई डीपीसी में चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन, एसीएस होम सुब्रत साहू, डीजीपी डीएम अवस्थी और यूपीएससी सदस्य एयर मार्शल अजीत भौंसले मौजूद थे। डीपीसी की सीनियरिटी में सबसे उपर धर्मेंद्र छवई का नाम था। धर्मेंद का 2019 की डीपीसी में एसीआर की वजह से आईपीएस अवार्ड नहीं हो पाई थी। उनके नीचे डीएस मरावी थे। मरावी के खिलाफ कोई जांच है, लिहाजा उनका नाम कट गया। मरावी केे नीचे वायपी सिंह थे। वायपी सिंह का पिछली डीपीसी में भी नाम आया था मगर रापुसे अधिकारियों के विरोध की वजह से उनका नाम लिफाफा में बंद कर दिया गया था। कमेटी ने आज धमेंद्र और वायपी सिंह के नामों को हरी झंडी दे दी।
इसी के साथ ही राज्य पुलिस सेवा के अधिकारियों का पिछले तीन साल से चल रहा प्रयास नाकाम हो गया। राज्य पुलिस सेवा के अधिकारी कोर्ट-कचहरी से लेकर यूपीएससी तक दरख्वास्त किया कि दोनों को आईपीएस अवार्ड न किया जाए। रापुसे अधिकारी वायपी सिंह को राज्य पुलिस सेवा में संविलयन का भी विरोध कर रहे थे। बिलासपुर के एडिशनल एसपी रोहित झा ने डीपीसी से ऐन पहिले आखिरी प्रयास करते हुए यूपीएससी चेयरमैन को पत्र लिख कर वायपी सिंह को आईपीएस अवार्ड रोकने का आग्रह किया था। रोहित ने लिखा था कि इस तरह अगर केंद्रीय सुरक्षा एजेंसिंयों के अधिकारियों को आईपीएस अवार्ड होने लगेगा तो फिर होड़ मच जाएगी।
हालांकि, वायपी और धमेंद्र को रोकने पुलिस महकमे ने भी काफी मदद की। गृह विभाग ने भी काफी मौका दिया। दो साल से डीपीसी नहीं हो पाई। इसके बावजूद रापुसे अधिकारी विधिक ग्रांउंड नहीं जुटा पाए, जिससे डीपीसी टाली जा सकें।
कौन हैं वायपी और धमेंद्र?
वायपी सह बीएसएफ के कमांडेंट थे। वे लंबे समय तक राजनांदगांव के नक्सली मूवमेंट में पोस्टेड रहे। पिछली रमन सरकार के दौरान 2017 में उन्हें कैबिनेट के जरिये छत्तीसगढ़ राज्य पुलिस सेवा में संवियलन किया गया। रापुसे में उन्हें 97 बैच मिला। वही, धमेंद्र छवई मध्यप्रदेश में पोस्टेड रहे। 2018 में पता नहीं कैडर का गुणा-भाग करके वे छत्तीसगढ़ आ गए। रापुसे अधिकारियों का धमेंद्र के नाम का विरोध इसलिए था कि वे कभी छत्तीसगढ़ में रहे नहीं और जब आईपीएस अवार्ड होने का मौका आया तो छत्तीसगढ़ चले आए। अगर इन दोनों अफसरों का नाम नहीं होता तो उमेश चैघरी और मनोज खिलाड़ी को आईपीएस बनने का मौका मिलता। रापुसे अधिकारियों ने लगातार इसका विरोध इसीलिए किया कि दो सीटें मारी गई।