जवान को छुड़ाने वाली टीम को CM का सलाम, ‘ताऊ जी’ को दिया साल और श्रीफल..

रायपुर(सेंट्रल छत्तीसगढ़): मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने नक्सलियों के चंगुल से कोबरा बटालियन के जवान राकेश्वर सिंह मनहास को रिहा कराने वाली मध्यस्थ टीम को सम्मानित किया. इस टीम में 91 साल के ‘ताऊ जी’ धर्मपाल सैनी भी शामिल थे. सीएम ने सैनी को शॉल और श्रीफल देकर सम्मानित किया.

सीएम ने मध्यस्थता टीम के बाकी सदस्यों का भी सम्मान किया. राकेश्वर सिंह मनहास से बात की. गोंडवाना समाज के बीजापुर जिला अध्यक्ष और सेवानिवृत्त शिक्षक तेलम बोरैया और मुर्दोंडा की पूर्व सरपंच सुखमती हपका ने भी अहम भूमिका निभाई थी. बस्तर के 7 स्थानीय पत्रकारों ने भी जवान की रिहाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

कौन हैं धर्मपाल सैनी ?

91 साल के धर्मपाल सैनी को छत्तीसगढ़ में ताऊ जी के नाम से जाना जाता है. वे एक समाजसेवी हैं और माता रुकमणी कन्या आश्रम का संचालन करते हैं. जगदलपुर शहर के साथ-साथ बस्तर संभाग के नक्सल प्रभावित इलाकों में उनके आश्रम संचालित हो रहे हैं. धर्मपाल सैनी के आश्रम में पढ़कर कई बालिकाओं ने राष्ट्रीय खेलों में प्रथम पुरस्कार जीतकर बस्तर का नाम रोशन किया है.

ताऊ जी 1976 में बस्तर में आए, तो यहां साक्षरता दर 1 फीसदी के आस-पास थी. यहां की साक्षरता दर को 65 फीसदी पहुंचाने में सैनी के योगदान को नकारा नहीं जा सकता. यही वजह है कि साक्षरता दर को सुधारने के साथ-साथ बस्तर के आदिवासी लड़कियों के लिए माता रुकमणी देवी आश्रम के अंतर्गत उन्होंने एक के बाद एक कुल 37 आवासीय स्कूल खोले हैं. इनमें से कई स्कूल नक्सल समस्या से बुरी तरह प्रभावित इलाकों में भी हैं.

कौन हैं तेलम बोरैया ?

जवान राकेश्वर सिंह मनहास को छुड़ाने में गोंडवाना समाज के बीजापुर जिला अध्यक्ष और सेवानिवृत्त शिक्षक तेलम बोरैया ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. वे मध्यस्थता टीम के सदस्य थे. आवापल्ली ब्लॉक के मुरदोंदा कमरगुड़ा के रहने वाले तेलम बोरैया रिटायर टीचर हैं. उनकी उम्र 70 साल की है. लेकिन वे समाज व गरीबों की सेवा में ही लगे रहते हैं. वर्तमान में गोंडवाना समाज समन्वय समिति बीजापुर के जिलाध्यक्ष और सर्व आदिवासी समाज के वरिष्ठ के रूप में है.

कौन हैं सुखमती हपका ?

राकेश्वर सिंह मनहास की रिहाई में मुर्दोंडा की पूर्व सरपंच सुखमती हपका ने भी मध्यस्थता में अपनी अहम भूमिका निभाई थी. सुखमती पहले भी एक वकील को रिहा कराने में योगदान दे चुकी हैं. 2010 में नक्सलियों ने क्षेत्र के एक वकील को अगवा कर लिया था. उस दौरान उनके पास कुछ लोग मदद मांगने आए थे. नक्सलियों से इस मुद्दे पर तीन-चार बार बैठक भी हुई. काफी मुश्किलों के बाद रिहाई हो पाई थी.

इसके अलावा जय रुद्र करे समेत बस्तर के 7 स्थानीय पत्रकारों का भी बड़ा योगदान जवान को रिहा कराने में रहा. जय रुद्र करे बीजापुर के हैं और रिटायर शिक्षक हैं. पत्रकारों में मुकेश चंद्राकर, यूकेश चंद्राकर, गणेश मिश्रा, शंकर समेत 7 पत्रकार टीम में शामिल थे.