बालोद में दिवाली उत्सव की शुरुआत हो गई है. यहां गांव–गांव पारंपरिक गौरा- गौरी को जगाने की रस्म मनाई जा रही है. रात में ग्रामीण एक जगह एकत्र होकर यह पर्व मनाते है. आदिवासी समाज की महिलाएं गौरा गीत के जरिए गौरा–गौरी को जगाती हैं.

बालोद (सेंट्रल छत्तीसगढ़) : देशभर में दिवाली का पर्व जहां धनतेरस से शुरू होता है. वहीं बालोद में दिवाली का पर्व 11 नवंबर से शुरू हो चुका है. जिले में बुधवार रात गौरा जगाने की रस्म मनाई गई. 15 नवंबर को गोवर्धन पूजा व गौरी-गौरा उत्सव मनाया जाएगा.

रात में ग्रामीण एक जगह एकत्र होकर यह पर्व मनाते है. आदिवासी समाज की महिलाएं गौरा गीत के जरिए गौरा–गौरी को जगाती हैं.


गीतों के माध्यम से आह्वान

जिले में पारंपरिक धुनों के बीच गौरा जगाने की रस्म आदिवासी समाज द्वारा किया गया. इसमें अन्य समाजों के लोगों की आस्था भी है. गौरा जगाने के पहले महिलाओं के साथ युवतियां एकत्रित हुई और इन्होंने पूजन किया.पारंपरिक छत्तीसगढ़ी वाद्य यंत्रों की धुन पर गौरा गीतों के साथ रस्म निभाई गई.

ऐसे निभाई जाती है रस्म

आदिवासी समाज के लोगों ने बताया कि लक्ष्मी पूजा के दूसरे दिन गौरा उत्सव मनाने की परंपरा है। इस परंपरा का निर्वहन मुख्य रूप से आदिवासी समाज करता है। अन्य समाज, वर्ग के लोग सहयोगी होते है। गौरा जगाने के पहले महिलाओं के साथ युवतियां गौरा चौक पर एकत्रित होकर पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुन पर गौरा गीतों के साथ पूजा की रस्म निभाई जाती है। भगवान शंकर व माता पार्वती की विश्राम के लिए गीतों के माध्यम से आह्वान होता है। यह परंपरा पूर्वजों के समय से चल रही है।

इन जगहों से निकलेगी गौरा-गौरी की बारात

बालोद जिले की बात करें तो बालोद शहर के नयापारा वार्ड में यह पर्व धूम धाम से मनाया जाता है. प्रत्येक गांव में यह पर्व मनाया जाता हा. पारंपरिक धुन और गौरा के ये गीत बेहद कर्णप्रीय होते हैं.

गोवर्धन पूजा की होगी रस्म

लक्ष्मी पूजा के दूसरे दिन गौरा उत्सव के अलावा गोवर्धन पूजा होगी. इस साल यह पर्व 15 नवंबर को मनाया जाएगा. दोपहर में यादव समाज के लाेग बाजे की पारंपरिक धुनों के साथ दोहे गाते राउत नाचा के साथ त्योहार की बधाई देंगे. गाय, बछड़े को खिचड़ी खिलाकर गोवर्धन पूजन (गोवर्धन खुंदवाई) की रस्म होगी.