कटघोरा के ढाबे बने शराबियों का अड्डा, कुछ पुलिस वाले भी लेतें हैं शराब का आनंद पड़ोसी राज्यों से लाकर पसंदीदा ब्रांड परोसी जाती है ₹140 की शराब ₹200 में बेची जाती है

कटघोरा / आशुतोष शर्मा

कटघोरा (कोरबा) – वर्ष 2018 से छत्तीसगढ़ शासन द्वारा मदिरा दुकान संचालित हो रहा है, एक तरफ शासन कोचिया बंदी कर अवैध शराब बिक्री पर रोक लगाने भरसक प्रयास कर रही है लेकिन शासन के कुछ नुमाइंदे ही राज्य शासन के मंसूबे पर खंजर घोपने का काम कर रहे हैं ऐसा ही कुछ नजारा कटघोरा में देखने को मिलता है कटघोरा नगर के स्थित स्थित संचालित ढाबों में पुलिस के अधिकारियों से सांठगांठ कर खुलेआम शराब परोसी जा रही है लगता है मानो इन रसूखदारों से पुलिस भी खौफ खाती है या कहें रिश्वत खाती है यहां यह बताना लाजमी है की आबादी क्षेत्र होने के बाद भी पुलिस की यह कार्य शैली कई सवालों को जन्म देती है बताया जाता है कि ढाबा में लगभग ₹30000 का शराब प्रतिदिन बिक्री हो रही है लोगों का कहना है की अवैध शराब बिक्री होन से माहौल खराब हो रहा है प्रतिदिन शराबियों का जमावड़ा यहां जमा रहता है जिससे आमजन बहुत परेशान नजर आ रहे हैं

कटघोरा के अंबिकापुर का मार्ग के समीप सांझा चूल्हा में दिन एवं रात में रहता है शराबियों का अड्डा, रात्रि 9:00 बजे के बाद शराब भट्टी बंद होने के बाद ढाबा संचालक द्वारा अवैध रूप से शराब की बिक्री किया जाता है जबकि कटघोरा पुलिस नगर में पुलिस की गश्ती होने का भी डर नहीं रहता ढाबा संचालक व शराबियों को। परंतु सोचने वाला विषय यह है कि क्या पुलिस इन लोगों पर कार्यवाही नहीं कर सकती लेकिन ऐसा नहीं है। शायद पुलिस के ही संलिप्तता में यह शराब ढाबों में बेचा जाता हो। क्या थाना प्रभारी का इस ओर ध्यान नहीं जाता । हो सकता इन्ही की शय में यह अवैध कारोबार चल रहा हो। मगर कटघोरा में यह मामला नया नही है। इससे पहले भी ढाबों में शराब बेचने का प्रचलन होता रहा है। छत्तीसगढ़ शासन द्वारा जो ब्रांड की शराब बेची जाती है वो न लेकर पड़ोसी राज्यों से लाखों की शराब ( पसंदीदा ब्रांड )लाकर छत्तीसगढ़ में अलग अलग जिलों में खपाई जाती है। ढाबों में प्रतिदिन लगभग ₹30000 की शराब बेची जाती है।

जबकि कुछ दिन पूर्व कटघोरा के एक अधिवक्ता व वार्ड वासियों के द्वारा इसकी शिकायत वर्तमान पुलिस अधीक्षक से कर चुके हैं लेकिन पुलिस प्रशासन का ध्यान इस ओर अभी आकृष्ट नहीं हुआ।

अब तो ढाबों में शराब बेचना कोई नई बात नहीं रह गई, क्यों कि यहां पर तो यह मुहावरा सहीं साबित होता है ” जब सैयां भये कोतवाल, तो डर काहे का “….