पाली परियोजना के अधीन आंगनबाड़ी केंद्रों में बच्चों,किशोरियों,गर्भवती व शिशुवती माताओं के लिए संचालित पूरक पोषण आहार योजना बना जेबें भरने का जरिया

हिमाशु डिक्सेना कोरबा (पाली):- एकीकृत महिला एवं बाल विकास परियोजना पाली के अंतर्गत 14 सेक्टरों के अधीन संचालित नगरीय सहित ग्रामीण के कुल 392 आंगनबाड़ी केंद्रों में अधिकांश कब खुलते है और कब बंद होते है।उस वार्ड के जनप्रतिनिधि को भी पता नही चलता।कहने को तो पाली परियोजना कार्यालय के पास इन 392 आंगनबाड़ी केंद्रों में 13890 बच्चों की दर्ज संख्या है।पर 30 फीसदी बच्चे भी उन तमाम आंगनबाड़ी केंद्रों में नही पहुँचते।वैसे तो आंगनबाड़ी लगने का समय सुबह 09 बजे से 3:30 तक है।किंतु नगर सहित ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित उन केंद्रों में बच्चों की किलकारी सुनाई ही नही देती।जहाँ उन बच्चों के हिस्से का पोषण आहार आखिर कहाँ जा रहा है इसका कोई अता-पता नही।आंगनबाड़ी में हर रोज बच्चों को पौष्टिक आहार के रूप में गर्म भोजन में दाल,चावल व प्रोटीनयुक्त सब्जियां देने का प्रावधान है।लेकिन बच्चों के सामने ज्यादातर आलू या सोयाबीन की बड़ी सब्जी के रूप में परोसा जाता है।अधिकतर कार्यकर्ता घर बैठे ही आंगनबाड़ी का संचालन करती है।और सहायिका के भरोसे केंद्र संचालित होते है।बच्चे भी गिने चुने रहते है।किंतु विभागीय तौर पर हर माह गर्म भोजन व पोषण आहार पर लाखों खर्च होता है।और कागजों में जिन बच्चों की दर्ज संख्या बताई जाती है उतने बच्चे उपस्थित ही नही रहते।मज़ेदार बात तो यह भी है कि कई केंद्रों में 3 वर्ष से ऊपर के बच्चे को आंगनबाड़ी ना भेजने की हिदायत कार्यकर्ता,सहायिका अभिभावकों को देते रहते है।और उनको मिलने वाला पोषण आहार भी नही दिया जा रहा।जबकि कई बच्चे 6 वर्ष से अधिक होने के बाद स्कूल में पहुच चुके है।इसके अलावा कई केंद्रों में एक माह से गर्म भोजन व पोषण आहार वितरण भी बंद है।किंतु ऐसे केंद्रों में बच्चो के नाम पर गर्म भोजन व पोषण आहार वितरण का खर्च कागजों में बराबर दर्ज हो रहा है।

प्रतिमाह लाखों खर्च के बाद भी सैकड़ों बच्चें कुपोषित
गर्भ से लेकर जन्म के 6 साल तक के बच्चों के लिए शासन द्वारा महिला बाल विकास के माध्यम से कई जनकल्याणकारी योजनाए संचालित किया जा रहा है।जिसके तहत गर्भवती व शिशुवती माताओं के साथ 6 माह से 6 वर्ष तक के नौनिहालों के लिए विभिन्न पोषण आहार योजना चलाई जा रही है।जिसमे समूह के माध्यम से गेंहू,चना,सोयाबीन,मूंगफली के मिश्रण से रेडी टू ईट तैयार कर वितरण किया जाना है।बच्चों के लिए शिशु शक्ति आहार,किशोरियों के लिये किशोरी शक्ति आहार तथा गर्भवती एवं शिशुवती माताओं के लिए महतारी शक्ति आहार के नाम से प्रति पैकेट 900 ग्राम रेडी टू ईट तैयार कर आंगनबाड़ी के माध्यम से वितरण किया जाना है।लेकिन इस सब के बाद भी कुपोषण के नियंत्रण में कमी नही आ रही है।पाली परियोजना में विभागीय आंकड़े के अनुसार 1275 गर्भवती तथा 1270 शिशुवती माताओं की वर्तमान संख्या है।जिनमें से 70 प्रतिशत माताओं को यह भी नही पता कि आंगनबाड़ी केंद्र के माध्यम से उन्हें भी पोषण आहार का पैकेट वितरण होना है।दूसरी ओर 6 माह से 3 वर्ष के 224 एवं 3 वर्ष से 6 वर्ष के 143 मिलाकर कुल 367 बच्चे कुपोषण के शिकार है।जबकि जमीनी हकीकत उक्त विभागीय आंकड़े के विपरीत तिगुना कुपोषित बच्चों की संख्या बयां कर रहा है।अब एक बात यह समझ नही आ रहा है कि आखिर प्रतिमाह पौष्टिक एवं गुणवत्तापरख पोषण आहार वितरण के नाम पर लाखों खर्च बताया जाता है फिर यह कैसा कुपोषण है जो खत्म होने का नाम ही नही ले रहा..?

कलेक्टर निर्देश के बाद भी नए समूहों की चयन प्रक्रिया ठंडे बस्ते में
बच्चों,किशोरियों,गर्भवती व शिशुवती माताओं के लिए पोषण आहार तैयार कर आंगनबाड़ी केंद्रों में वितरण करने वाले जिले भर के लगभग 70 स्व सहायता समूहों को कलेक्टर श्रीमती किरण कौशल द्वारा बदलने के निर्देश एक माह पहले लिए गए बैठक के दौरान जिला कार्यक्रम अधिकारी को दिए गए थे।जिसका पालन आज पर्यन्त तक नही हुआ।जबकि नियमानुसार समूह का अनुबंध 5 वर्ष की अवधि के लिए किया जाता है।इसके उपरांत सामान्य प्रशासन के निर्देशानुसार नए सिरे से आवेदन के माध्यम से नए समूह का चयन किये जाने का प्रावधान है।उल्लेखनीय है कि जिले में पोषण आहार तैयार करने वाले सभी समूह पूर्व शासन के कार्यकाल से चयनित है।तथा एक वर्ष पहले से इन सबकी अनुबंध की मियाद भी खत्म हो चुकी है।क्योंकि सत्ता परिवर्तन के बाद नियमानुसार नए समूहों का चयन होना था।जिसके लिए कलेक्टर द्वारा आवेदन के माध्यम से नए समूहों का चयन करने के लिए एक माह पहले हुए बैठक में डीपीओ को निर्देश दिए गए थे।किन्तु उक्त निर्देश का परिपालन आज तक नही हुआ।और नए समूहों की चयन प्रक्रिया ठंडे बस्ते में चली गई।