रायपुर (सेंट्रल छत्तीसगढ़): सावन का शुभ महीना रविवार से शुरू हो गया है. इस साल सावन 29 दिनों का रहेगा. यह 22 अगस्त रक्षाबंधन के दिन पूरा होगा. इस सावन महीने में चार सावन सोमवार पड़ रहे हैं. इसी महीने छत्तीसगढ़ में हरेली और रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाता है. गौरतलब हो कि सावन के महीने में शिवालयों में शिव भक्त और श्रद्धालुओं की भीड़ भी लगी होती है. खास तौर पर श्रद्धालु सावन महीने में सोमवार के दिन उपवास रहकर भगवान भोलेनाथ की विधि विधान से शिवालयों में पूजा अर्चना करते हैं . रायपुर के महादेव घाट स्थित प्राचीन हटकेश्वर नाथ मंदिर के साथ ही राजधानी के दूसरे शिव मंदिरों में भी पूरे सावन भर भगवान शिव की पूजा आराधना की जाती हैं. कुंवारी कन्या सावन के महीने में उपवास रखकर भगवान भोलेनाथ की पूरी विधि विधान से पूजा आराधना करते हैं. जिससे उन्हें मनचाहा वर प्राप्त हो.
प्राचीन हटकेश्वर नाथ मंदिर
शिवालयों में गूंजेगा ओम नमः शिवाय
पूरे सावन महीने, देवालयों में देवों के देव महादेव की पूजा अर्चना की जाती है. भगवान भोलेनाथ का रुद्धाभिषेक किया जाता है. महामृत्युंजय के पवित्र मंत्र का सभी शिव भक्त श्रद्धा और भक्ति से पाठ करते हैं.
ऐसे करें भगवान भोलेनाथ की पूजा
सावन के पहले सोमवार पर भगवान भोलेनाथ की पूजा करने के लिए जातक को सबसे पहले सुबह उठकर स्नान करना होगा. इसके बाद शिवालय जाकर भगवान शिव, माता पार्वती और नंदी बाबा पर गंगाजल अर्पित करें. जल अर्पित करने के बाद शिवलिंग पर चंदन, बेलपत्र, धतूरा और अक्षत चढ़ाएं. बाबा भोलेनाथ को सफेद रंग की मीठी वस्तु मसलन मिश्री या बर्फी चढ़ाएं. मान्यता है कि सावन मास में शिवलिंग पर पूजा के दौरान केसर चढ़ाने से सुख एवं समृद्धि बढ़ती है. जीवन से दरिद्रता और परेशानी चली जाती है.
दक्ष पुत्री ने अगले जन्म में माता पार्वती का रूप लिया
पौराणिक मान्यता है कि दक्ष पुत्री ने अगले जन्म में माता पार्वती का रूप लिया. माता पार्वती ने भोलेनाथ की पुनः प्राप्ति हेतु इस सावन के पावन महीने में ही शिव की घनघोर आराधना और तपस्या की. इस व्रत से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में धारण किया. इसके फलस्वरूप यह महीना कुंवारी कन्याओं के द्वारा शिव की भक्ति उपासना स्तुति हेतु सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना गया है.
प्राचीन हटकेश्वर नाथ मंदिर
सावन महीने में ही हुआ था समुद्र का मंथन
पौराणिक मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन का कार्य भी इसी सावन महीने में ही हुआ था. समुद्र मंथन के फल स्वरुप निकलने वाले जहर को अनादि शंकर ने देवताओं के आग्रह करने पर अपने कंठ में लिया था. फलस्वरूप वे नीलकंठ कहलाए.
प्रकृति के देव माने जाते हैं भगवान भोलेनाथ
भगवान भोलेनाथ प्रकृति के देवता हैं. आदिदेव हैं महादेव हैं. वेदों में भगवान महादेव का वर्णन है. इस महीने में प्रकृति की पूजा के रूप में महादेव की पूजा की जाती है. सनातन परंपरा में प्रकृति पूजा को ही सर्वोच्च स्थान दिया गया है. प्रकृति हमें सब कुछ देती है उसके धन्यवाद स्वरूप सावन के महीने में भगवान भोलेनाथ की पूजा की जाती है. पुराणों के अनुसार इस माह में भगवान भोलेनाथ ने विषपान भी किया था. भोलेनाथ को शांत करने के लिए भगवान इंद्र ने वर्षा की, इसी माह में सारे भक्त विभिन्न नदियों से जल लाकर शिवजी को अर्पित कर प्रसन्न करते हैं. सावन माह में ही पर्वतराज की पुत्री पार्वती ने जन्म लिया और तपस्या से इसी माह में भगवान शिव को प्रसन्न किया.