कोरबा(सेंट्रल छत्तीसगढ़):- कोरबा जिले में 10 जून के बाद प्रशासन ने रेत उत्खनन पर पाबंदी लगा दी है जिससे जिले में रफ्तार पकड़ रही विकास कार्यों की गति थमने लगी है और रोजगार की तलाश में एक बार फिर ग्रामीण पलायन के लिए मजबूर हो रहे हैं।
वैश्विक महामारी कोरोना ने विगत डेढ़ वर्ष से सभी वर्ग की आर्थिक स्थिति बिगाड़ कर रख दी है।कोरोना के पहली लहर के बाद लाकडाउन की समाप्ति के पश्चात विकास कार्यों को गति मिल रही थी जिससे लोगों की आर्थिक स्थिति व अर्थव्यवस्था में सुधार की गुंजाइश दिख रही थी किन्तु गत अप्रैल माह कोरोना की दूसरी लहर के लगभग 2 माह लॉक डाउन ने घर में रहने मजबूर कर दिया।अभी 1 जून से पुन सरकारी और निजी विकास कार्यों ने गति पकड़ी ही थी कि इसी बीच 10 जून के बाद वर्षा ऋतु के मद्देनजर प्रशासन के द्वारा एहतियात के तौर पर रेत उत्खनन पर आगामी आदेश तक रोक लगा दी है। इससे कार्यों के लिए रेत की कमी होने से कई विकास कार्य ठप हो गए हैं जबकि इससे जुड़े ट्रैक्टर चालक,हेल्फर, राज मिस्त्री, मजदूर,कुली, श्रमिक आदि निर्माण सामग्री से जुड़े व्यवसाय पर बुरा असर डाला है। विशेषकर श्रमिक वर्ग को इससे काफी नुकसान हुआ है,क्योंकि 1 जून से लेकर महज 10 दिन ही उन्हें काम मिला। कुछ जगहों पर रेत एकत्रित कर कार्य चलाया जा रहा है। लेकिन वह भी कितने दिन चल पाएगा इस पर संदेह है। ऐसे में बिना खेती किसानी पर आश्रित निम्न मजदूर वर्ग को अपनी रोजी-रोटी की तलाश के लिए पलायन ही एकमात्र रास्ता है। निर्माण कार्यों से जुड़े ट्रैक्टर मालिक भी वाहन के किस्तो के भुगतान के लिए फिर से कर्जदार हो रहे हैं। लॉकडाउन और करोना कॉल से धीरे-धीरे उबरने की कोशिश कर रहे ऐसे लोगों पर यह बड़ी मार है। चूँकि अभी बरसात का मौसम पूरी तरह से सक्रिय नहीं हुआ है और कोरोना काल में लॉक डाउन पर बेकारी की समस्या के मद्देनजर ऐसे स्थिति में सभी वर्ग का ध्यान रखते हुए संवेदनशीलता का परिचय देते हुए कुछ दिनों के लिए रेत उत्खनन में छूट मिलने की उम्मीद थी।किन्तु ऐसा नही हो पाया।नव नियुक्त जिलाधीश रानू साहू से सहानुभूति पूर्वक विचार करने की मांग करते हुए जनप्रतिनिधियों ने कुछ दिनों के लिए रेत उत्खनन में छूट देने की मांग की है। जिससे लोगों की आर्थिक स्थिति में सुधार हो वही पलायन जैसी स्थिति पर रोक लग सके।