कोरबा (सेंट्रल छत्तीसगढ़ ):-कोरबा 26 दिसम्बर 2020/छत्तीसगढ़ सरकार की कई जनहितकारी योजनाएं छोटे से प्रयास और छोटी-छोटी सरकारी मदद से गांव-गरीबों, किसानों की जिंदगी में बदलाव का बेहतर उदाहरण बन रहीं हैं। सरकार की योजनाओं से अपने ही नहीं अपने परिवार के भी जीवन स्तर में सकारात्मक परिवर्तन की मिसाल कोरबा जिले के किसान श्री रंजीत कुमार कंवर ने भी कायम कर दी है। अनुसूचित जनजाति वर्ग के रंजीत कुमार सुदूर पोड़ी-उपरोड़ा विकासखण्ड के पतुरियाडांड गांव के रहने वाले हैं। रंजीत कुमार को जिला खनिज न्यास मद से खेत में नलकूप खनन के लिए मिली मदद ने खेती के प्रति उनकी सोच को ही बदल कर रख दिया है। खेत के नलकूप बन जाने से सिंचाई का पानी मिला तो एक ही सीजन में रंजीत ने 240 क्विंटल मक्के का उत्पादन कर डाला। समर्थन मूल्य पर कुछ मक्का सोसायटी में बेचा तो कुछ खुले बाजार में। एक ही सीजन में मक्के की खेती से रंजीत ने लगभग पांच लाख रूपए की आमदनी प्राप्त कर ली है। रंजीत ने अब अपने पुराने कच्चे घर की जगह पर नया पक्का घर बनाना भी शुरू कर दिया है। अपनी इस सफलता से सरकारी योजनाओं के प्रति उनका विश्वास भी बढ़ गया है। खुद रंजीत कहते हैं कि जरूरतमंदो को सरकारी योजनाओं का मेरी तरह अब फायदा मिलने लगा है। अब मैं और मेरे जैसे दूसरे गरीब किसान भी खेती से अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। रंजीत की देखा-देखी आसपास के इलाके के किसान भी अब उन्नत खेती, फसल परिवर्तन से किसानी को लाभ का व्यवसाय बनाने की तरफ अग्रसर हैं। युवा रंजीत ने आसपास के गांव के शिक्षित बेरोजगार युवाओं को भी खेती से जुड़कर अपने गांव-घर में रहकर रोजगार और आमदनी पाने का नया रास्ता दिखाया है।
परंपरागत रूप से बारिश पर आधारित धान की खेती करने वाले पतुरियाडांड के रंजीत कुमार के पास 1.75 एकड़ जमीन है। जमीन भी ऐसी उच्चहन क्षेत्र की भाठा टीकरा जिस पर धान की फसल भी ना हो सके। इस खेत में पहले केवल बारिश के मौसम में ही परंपरागत रूप से उड़द, मूंग, कुलथी जैसी फसलों की ही खेती रंजीत और उसका परिवार करता था। फसल कटने के बाद खेत लगभग आठ-नौ महीने के लिए खाली रहता था। रंजीत बताते हैं कि केवल खरीफ में ही खेती होती थी, वह भी इतनी कि घर में खाने के लिए भी कमी पड़ जाती थी। उनका और उनके परिवार का जीवन-यापन बहुत मुश्किल से होता था। इसके बाद कृषि विभाग द्वारा जिला खनिज न्यास मद से रंजीत के खेत पर पिछले साल नलकूप खनन कराया गया। सिंचाई के लिए पाईप, स्प्रिंकलर आदि भी शासकीय अनुदान पर उपलब्ध कराये गए। कृषि विभाग के अधिकारियों की सलाह पर रंजीत ने मक्का की खेती शुरू की। अपनी जमीन पर सिंचाई का पानी मिल जाने से रंजीत ने आसपास के आठ एकड़ खेत को भी पड़ोसियों से लीज पर लिया और लगभग दस एकड़ रकबे में मक्के की फसल लगाई। समय-समय पर खाद, बीज, दवाई, सिंचाई, कटाई आदि के लिए कृषि विभाग के अधिकारियों का मार्गदर्शन रंजीत को मिलता रहा और आज रंजीत की मेहनत रंग लाई। रंजीत ने अपनी 1.75 एकड़ जमीन पर 40 क्विंटल मक्के का उत्पादन किया है। इसके साथ ही आठ एकड़ लीज की जमीन पर लगभग 200 क्विंटल मक्का उत्पादन हुआ है। रंजीत बताते हैं कि अपनी जमीन के मक्का को बेचने के लिए सहकारी समिति में पंजीयन कराया था। एक हजार 850 रूपए समर्थन मूल्य पर 40 क्विंटल मक्के के लिए रंजीत को 74 हजार रूपए का भुगतान मिलेगा। लीज की जमीन पर उगे लगभग 200 क्विंटल मक्के को रंजीत ने खुले बाजार में बेचने की तैयारी कर ली है। व्यापारियों से हुए प्रारंभिक संवाद में उसे लगभग दो हजार रूपए प्रति क्विंटल की दर से इस मक्के के लगभग चार लाख रूपए मिलने की आशा है।
खेत मंे नलकूप खुद जाने से सिंचाई का भरपूर पानी रंजीत को मिल रहा है और उन्होंने खेती की आगामी मार्च महीने तक की प्लानिंग कर ली है। इस चालू रबी मौसम में अपने खेत के नलकूप के पानी से सब्जी और अन्य उद्यानिकी फसलें लगाकर रंजीत कुमार लगभग एक लाख रूपए की अतिरिक्त आय पाने की योजना भी बना चुके हैं। इसके बाद मार्च महीने में फिर ग्रीष्म कालीन मक्के की खेती की योजना भी रंजीत ने अभी से बना ली है। रंजीत ने अपने खेत मंे दो डबरियां भी बनवाई हैं जिनमें पानी भरकर बायो प्लाक से मछली पालन की तैयारी भी कर रहे हैं।