बिलासपुर में वरमाला के बाद पोस्टर ले कर खड़े हो गय दूल्हा-दुल्हन,हसदेव को बचाने का संदेश.


बिलासपुर(सेंट्रल छत्तीसगढ़): 
हसदेव के जंगलों को कोयला खदानों के लिए आवंटित करने की तैयारी है. आवंटन के बाद कोयले के लिए खनन किया जाएगा, जिससे 9 लाखोें पेड़ों की कटाई की जाएगी. पेड़ों की कटाई का विरोध प्रदेश के कई हिस्सों में किया जा रहा है. ऐसे ही मामले बिलासपुर में एक अनूठी शादी में दूल्हा और दुल्हन ने तख्ती के माध्यम से हसदेव अरण्य को बचाने का संदेश दिया है. दूल्हा और दुल्हन ने मंच से हसदेव को बचाने की गुहार लगाकार अपनी शादी को भी विशेष बनाया है.

6 हजार एकड़ का जंगल उजड़ेगा: पूरा मामला हसदेव अरण्य क्षेत्र में लाखों पेड़ काटकर उसमें कोयला खदान खोलने का है. परसा कोल ब्लॉक आवंटन हो चुका है. अब खदान खोलने की प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है. जिसमे सबसे पहले 6 हजार एकड़ में फैला जंगल काट दिया जाएगा. लाखों पेड़ काटकर जंगल को कोयले की भट्ठी बना दिया जायेगा. जिससे सरगुजा और कोरबा की तपिश बढ़ जाएगी.

9 लाख पेड़ काटने का अनुमान: सरकारी गिनती के अनुसार 4 लाख 50 हजार पेड़ कटेंगे. जबकि ग्रामीणों का कहना है कि “सरकारी गिनती में सिर्फ बड़े पेड़ों को ही गिना जाता है. जबकि छोटे और मीडियम साइज के पेड़ों की गिनती नहीं की जाती. ग्रामीणों का अनुमान है की यहां 9 लाख से भी ज्यादा पेड़ कांटे जाएंगे. इतने पेड़ अगर काट दिये गये तो प्रकृति का विनाश तय है. जिसका शिकार सरगुजा और कोरबावासियों को झेलना पड़ेगा”.

क्या है हसदेव अरण्य: छत्तीसगढ़ में हसदेव अरण्य कोरबा, सरगुजा और सूरजपुर जिले का वो जंगल है जो मध्यप्रदेश के कान्हा के जंगलों से झारखंड के पलामू के जंगलों को जोड़ता है. यह मध्य भारत का सबसे समृद्ध वन है. हसदेव नदी भी खदान के कैचमेंट एरिया में है. हसदेव नदी पर बना मिनी माता बांगो बांध जिससे बिलासपुर, जांजगीर-चाम्पा और कोरबा के खेतों और लोगों को पानी मिलता है. इस जंगल में हाथी समेत 25 वन्य प्राणियों का रहवास और उनके आवागमन का क्षेत्र है.

क्यों है खनन से आपत्ति: वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 2010 में हसदेव अरण्य में खनन प्रतिबंधित रखते हुये इसे नो – गो एरिया घोषित किया था. लेकिन बाद में इसी मंत्रालय के वन सलाहकार समिति ने अपने ही नियम के खिलाफ जाकर यहां परसा ईस्ट और केते बासेन कोयला परियोजना को वन स्वीकृति दे दी थी. समिति की स्वीकृति को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने निरस्त भी कर दिया था.