बालोद: जिले के गुंडरदेही क्षेत्र के गांव गोरकापार का नाम पिछले 100 साल से गांधी गोरकापार हो गया है, देश के स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल वली मुहम्मद की रिहाई के बाद गांव के नाम के आगे गांधी जोड़ दिया गया, जानिए कौन थे वली मुहम्मद..

बालोद (सेंट्रल छत्तीसगढ़) रमाशंकर सह : हमारे देश के स्वतंत्रता आंदोलन में एक सिपाही ऐसे भी हुए हैं,जिनकी रिहाई की वजह ‘बापू का सपना’ बना. जब बापू का यह सपना सच हो गया तो गांववालों ने खुद गांव नाम के आगे गांधी जोड़ लिया. उस वक्त के दुर्ग और अब के बालोद जिले के गुंडरदेही क्षेत्र के गांव गोरकापार का नाम पिछले 100 साल से गांधी गोरकापार हो गया है.

Gandhi's dream became the reason for the release of the soldier of Gorkapar Balod

रिहाई के कागजात

यहां के अमीन पटवारी वली मुहम्मद अंग्रेजों की नौकरी छोड़ स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े थे और एक वक्त ऐसा भी आया जब अंग्रेजों की जेल में ‘बापू का सपना’ उनकी रिहाई की वजह बना. इस घटना का असर यह हुआ कि ग्रामीणों ने अपने गांव का नाम ही गांधी गोरकापार कर दिया, जो आज भी कायम है.

Gandhi's dream became the reason for the release of the soldier of Gorkapar Balod

ताम्रपत्र

अंग्रेजों के मुलाजिम वली मुहम्मद ऐसे बन गए थे गांधी के सिपाही

गुंडरदेही में अमीन पटवारी वली मुहम्मद का अंग्रेजों की नौकरी छोड़ स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने से जुड़ा तथ्य भी बेहद रोचक है. उनसे जुड़ी घटनाओं का जिक्र जिला कांग्रेस कमेटी दुर्ग के तत्कालीन महामंत्री बदरुद्दीन कुरैशी के संपादन में 1995 में निकाली गई किताब ‘आजादी के दीवाने’ और फरवरी 2020 में जगदीश देशमुख द्वारा लिखित किताब ‘छत्तीसगढ़ के भूले बिसरे स्वतंत्रता सेनानी’ में विस्तार से है. इन्हें छत्तीसगढ़ के स्वतंत्रता सेनानियों की गाथाओं पर प्रकाशित कई दूसरी किताबों में भी दर्ज किया गया है.

Amin Patwari Wali Muhammad of Gundradehi

वली मुहम्मद

जेब में थी बापू की तस्वीर

दस्तावेजों में दर्ज घटनाक्रम के मुताबिक 1920-21 में जब वली मुहम्मद पटवारी के तौर पर गुंडरदेही के गोरकापार में पदस्थ थे, तब एक आदिवासी को उसकी गुम भैंस का पता चला. जब आदिवासी उस बूढ़े को धन्यवाद देने खोजने लगा, तब अमीन पटवारी वली मुहम्मद वहां उसे मिल गए. संयोग से वली मुहम्मद की जेब में महात्मा गांधी की एक तस्वीर थी और अचानक आदिवासी की नजर इस तस्वीर पड़ी तो उसने उस बूढ़े के तौर पर महात्मा गांधी की इसी फोटो की शिनाख्त कर दी. इस घटना से वली मुहम्मद इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने महात्मा गांधी को एक संत महात्मा मानते हुए अंग्रेजों की नौकरी छोड़ दी और स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े.

वली मुहम्मद की रिहाई की वजह

स्वतंत्रता सेनानी वली मुहम्मद की पहली जेलयात्रा और वहां से रिहाई का एक रोचक किस्सा भी इन किताबों में दर्ज है, जिसके मुताबिक असहयोग आंदोलन के दौर में उन्हें नागपुर जेल में रखा गया था. यहां से उन्हें गोंदिया जेल भेज दिया गया था. इस दौरान उन्हें जेल में आभास हुआ कि उनके ग्राम गोरकापार की संत प्रवृत्ति की महिला ने महात्मा दाई उन्हें आशीर्वाद देते हुए कह रही है कि जन्माष्टमी पर तुम्हारी रिहाई हो जाएगी. इस घटना का रोचक पहलू यह है कि महात्मा दाई ने प्रत्यक्ष तौर पर यह बात गोरकापार गांव के लोगों को भी बताई थी कि पटवारी वली मुहम्मद जन्माष्टमी के दिन रिहा हो जाएंगे. वाकई ऐसा हुआ भी. जब अंग्रेजों की कैद से रिहा होकर वली मुहम्मद गोरकापार पहुंचे तो उनका खूब स्वागत हुआ. इसके बाद वली मुहम्मद ने महात्मा दाई से मुलाकात की और उनसे अपने सपने के बारे में बताया। इस पर महात्मा दाई ने कहा कि उन्हें सपने में आकर बापू ने कहा था. इसके बाद से आसपास गांव में मशहूर हो गया कि महात्मा दाई को स्वप्न में आकर महात्मा गांधी निर्देश देते हैं.


डौंडी लोहारा में एकजुट किया स्वतंत्रता सेनानियों को

स्वतंत्रता सेनानी वली मुहम्मद ने बाद के दिनों में डौंडी लोहारा को अपना कर्मक्षेत्र चुना. दस्तावेजों के मुताबिक डौण्डीलोहारा जमींदारी में उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के लिए लोगों को एकजुट किया और लगभग 100 लोगों ने उनके साथ जेल यात्रा की थी.


नगर का नामकरण हो वली मुहम्मद के नाम पर

स्वतंत्रता सेनानी वली मुहम्मद के गुजरने के छह दशक बाद भी आज तक उनकी स्मृति को अक्षुण्ण बनाए रखने किसी तरह का ठोस प्रयास नहीं हुआ है.वर्ष 1997 में जब देश में स्वतंत्रता की 50 वीं वर्षगांठ मनाई गई तो उनका नाम अंकित शिलालेख डौंडी लोहारा में लगाया गया. उनके वंशजों में पौत्र और शिक्षा विभाग से रिटायर सहायक संचालक मुहम्मद अब्दुल रशीद खान बताते हैं कि डौंडी लोहारा में एक मुहल्ले का नाम वली मुहम्मद नगर रखने की पहल की गई थी.