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सेन्ट्रल छत्तीसगढ़ : 15 नवंबर, रविवार को गोवर्धन पूजा (अन्नकूट) का पर्व मनाया जाएगा. हिंदू पंचांग के मुताबिक कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाता है. इस दिन गोवर्धन (पर्वत) और गौमाता की पूजा का विशेष महत्व होता है. इस दिन लोग घर के आंगन में गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर गोवर्धन भगवान की पूजा करते हैं.
गोवर्धन पूजा का पर्व
गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त
कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा यानी 15 नवंबर 2020 को गोवर्धन पूजा का मुहूर्त दोपहर 3 बजकर 17 मिनट से 5 बजकर 24 मिनट तक रहेगा. वहीं प्रतिपदा तिथि की बात करें तो ये 15 नवंबर की सुबह 10 बजकर 36 मिनट से शुरू होगी. साथ ही 16 नवंबर की सुबह 7 बजकर 5 मिनट पर खत्म होगी.
गोवर्धन पूजा विधि
सुबह शरीर पर तेल मलकर स्नान करें. घर के मुख्य द्वार पर गाय के गोबर से गोवर्धन की आकृति बनाएं. पास में ग्वाल-बाल, पेड़-पौधों की आकृति भी बनाएं. बीच में भगवान कृष्ण की मूर्ति रखें. इसके बाद भगवान कृष्ण, ग्वाल-बाल और गोवर्धन पर्वत की पूजा करें. पकवान और पंचामृत का भोग लगाएं. गोवर्धन पूजा की कथा सुने और आखिर में प्रसाद लें.
गोवर्धन पूजा की कथा
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक भगवान श्री कृष्ण ने लोगों से इंद्र की पूजा करने की बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा करने को कहा था. हालांकि इससे पहले लोग बारिश के देवता इंद्र की पूजा किया करते थे. भगवान कृष्ण ने लोगों को बताया कि गोवर्धन पर्वत से गोकुल वासियों को पशुओं के लिए चारा मिलता है. गोवर्धन पर्वत बादलों को रोककर वर्षा करवाता है. जिससे कृषि उन्नत होती है. इसलिए गोवर्धन की पूजा की जानी चाहिए न कि इंद्र की. जब यह बात देवराज इंद्र को पता चली तो इसे उन्होंने अपना अपमान समझा. फिर गुस्से में गोकुल वासियों पर मूसलाधार बारिश शुरू कर दी.
उंगली पर उठाया था पर्वत
मूसलाधार बारिश से गोकुल वासियों पर संकट आ गया. उनके मवेशी डूबने लगे. पूरा गोकुल नगर जलमग्न हो गया. चारों ओर तबाही देख भगवान श्री कृष्ण ने अपनी कनिष्ठिका उंगली (छोटी उंगली) से गोवर्धन पर्वत को उठा लिया. जिसके नीचे सारे गोकुल नगर ने पनाह ली. इसलिए गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाता है.
पशुओं की होती है पूजा
गोवर्धन पूजा का पर्व छत्तीसगढ़ में पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है. इस त्योहार को लेकर छत्तीसगढ़वासियों के बीच एक खास परंपरा रही है. इस दिन इस त्योहार को पारंपरिक तरीके से मनाया जाता है. गांवों में पशुओं को विशेष तरह से सजाया जाता है. बाकायदा बैंड बाजे के साथ पशुओं को घूमाया जाता है. इसके अलावा इस दिन राज्य के गांव-गांव में सुबह से राउतों की टोली भी सड़कों पर निकलती है. दल राउत नाचा नृत्य करते नजर आते हैं. राउत भी पारंपरिक परिधान में सजकर उत्साह से भर देने वाला नृत्य करते हैं.