नहाय खाय के साथ छठी मैया के पूजा की शुरुआत


सरगुजा(सेंट्रल छत्तीसगढ़):
 भगवान भास्कर यानी की सूर्य देव की पूजा, आराधना और उपासना का ‘महापर्व छठ’ (Mahaparv Chhath) वैसे तो बिहार-झारखंड-उत्तर प्रदेश से शुरू हुआ लेकिन अब यह व्रत पूरे देश मे मनाया जाने लगा है. छत्तीसगढ़ राज्य का सरगुजा संभाग जो बिहार-झारखंड और उत्तरप्रदेश की सीमा से लगा हुआ है. संभाग के सबसे बड़े शहर अम्बिकापुर की ज्यादातर आबादी में इन्हीं प्रदेशों से आकर लोग बसे हुए हैं.

यही कारण है कि सरगुजा में छठ पर्व (Chhath festival) की धूम देखते ही बनती है. कोरोना के बाद एक बार फिर छठ महापर्व को लेकर श्रद्धालुओं में गजब का उत्साह और खुशी देखने को मिल रही है. व्रती महापर्व की तैयारी में पूरी तन्मयता से जुट गए हैं. घरों की साफ-सफाई से लेकर सूर्यदेव की उपासना (worship of the sun god) में काम आने वाले पूजा सामग्रियों को एकत्रित किया जा रहा है. घरों में महिला-पुरूष एक साथ पूर्ण श्रद्धा और पवित्रता के बीच महापर्व की तैयारी में जुटे हुए हैं.

देखा जाय तो अम्बिकापुर के शंकर घाट, खर्रा नदी, खैरबार, गोधनपुर, सत्तीपारा तालाब जहां मूख्य रूप से सबसे अधिक भीड़ होती है, इन सभी घाटों पर इस दिन लगभग 1 लाख से अधिक लोगों की भीड़ एकत्रित होती है. अकेले शंकर घाट पर ही प्रति वर्ष 30 हजार से अधिक लोग आते हैं. जबकी खर्रा में इस वर्ष 1 हजार सुपला रखने की व्यवस्था है, इस व्रत में एक व्रती के साथ परिवार औऱ आस पास के लगभग 15-20 लोग शामिल होते हैं, मतलब इस घाट पर 1 लाख से भी अधिक की भीड़ जुटने की आशंका है.

अम्बिकापुर से झारखंड को जाने वाले मुख्यमार्ग (highway) स्थित शंकर घाट पर छठ पर्व की भीड़ के कारण लगभग 24 घंटे मुख्य मार्ग बंद रहता है और प्रशासन रुट डायवर्ट (route divert) कर आवागमन संचालित करता है. जिले भर में करीब 20 बड़े तथा 150 से अधिक छोटे छठ घाट पर छठ पूजा की जाती है. जनसंख्या की लगभग 20 फीसदी और शहर की आबादी (city ​​population) के 80 प्रतिशत लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से छठ पर्व में हिस्सा लेते हैं.


कठिन तप और अनुशासन का व्रत
छठ पर्व जितने भव्य स्वरूप से मनाया जाता है, उतना ही कठिन और अनुशासन का व्रत है. सनातन धर्म के सबसे कठिन व्रतों में इसे माना जाता है. तीन दिवसीय इस पर्व के अनुष्ठान में व्रत करने के लिये 4 दिनों की लंबी प्रक्रिया से गुजरनी होती है.

नहाय खाय
छठ व्रत की शुरुआत पहले दिन नहाय खाय के साथ होती है. पूजा में उपयोग किये जाने वाले गेहूं की साफ-सफाई और धुलाई की जाती है. इस दिन महिलाएं पूर्णतः शुद्ध होकर गेहूं धोती हैं और गेहूं को धूप में सूखाया जाता है. इस दौरान यह भी ध्यान रखना होता है की कोई पक्षी इस गेहूं में चोंच मार कर इसे जूठा ना कर दे. इसके बाद पुराने समय मे उपयोग की जाने वाली हाथ चक्की (जांता) में यह गेहूं पीसा जाता है. इस दिन नहाय खाय का पालन शुरू होता है. जिसमे व्रत रखने वाले लोग नहा कर पूरी तरह शुद्ध होते हैं. उस दिन व्रत शुरू करने से पहले का अपना भोजन खुद बनाते हैं. शुद्ध घी में बनने वाले इस भोजन को खाने के बाद से व्रत शुरू हो जाता है. व्रत शुरू होने से 24 घंटे पहले बिना लहसुन-प्याज के शुद्ध व सात्विक भोजन किया जाता है. जिसमे कद्दू की शब्जी खाने का चलन है.

खरना
व्रत के दूसरे दिन व्रती निर्जला व्रत रखे हुये शाम को नए चावल, गुड़ व घी से खीर बनाती हैं. इस क्रिया को खरना कहा जाता है. इस खीर को व्रती महिला या पुरुष खाते हैं लेकिन इस भोजन के दौरान भी बड़ा ही कठिन नियम का पालन करना होता है. व्रत के दौरान खीर वाले शख्स की कानों तक भोजन के वक्त किसी भी जीव-जंतु या इंसान की पुकार नहीं जानी चाहिये. या फिर उस खीर में कोई कंकण या पत्थर भी नहीं आना चाहिए. वरना उसे अपना भोजन वहीं छोड़ना पड़ेगा. फिर चाहे वह पहला निवाला ही क्यों ना खाया हो. इसलिए इस दौरान परिवार के सभी लोग एक जगह शांति से बैठ जाते हैं और मोहल्ले में कोई पशु आसपास हो तो उसे दूर कर दिया जाता है. इसी दिन शाम को छठ घाट पर जाकर पूजन के बाद अगले दिन की पूजा के लिये स्थान चयन किया जाता है.

अस्तांचलगामी सूर्य को अर्घ्य
व्रत के तीसरे दिन दिन भर निर्जला व्रत करते हुए पूजा की तैयारी होती है और पहले दिन पीसे गये गेहूं के आटे को गुड़ के साथ मिलाकर उसे शुद्ध घी में तलकर प्रसाद बनाया जाता है. जिसे स्थानीय भाषा ठेकुआ कहा जाता है. इसके साथ ही सूर्य देव को चढ़ाने के लिये कार्तिक मास में आने वाले सभी नये फल जैसे, गन्ना, शरीफा, अदरक, मूगफली, सेव, केला, सकला, जैसे तमाम फलों के साथ ठेकुआ के प्रसाद से सूपा सजाया जाता है. वह सूपा जो आम तौर पर घरों में अनाज फटकने के काम में आता है, बिल्कुल नये सूप में ये सारी सामग्रियां सजाई जाती हैं. साथ ही तमाम पूजन सामग्री एकत्र होती है और शाम से पहले व्रती अपने पूरे परिवार के साथ छठ घाट के लिए पैदल प्रस्थान कर जाते हैं. सूर्यास्त से पहले वहां पहुंचकर पहले से चिन्हांकित स्थान पर गन्ने से मंडप बनाया जाता है और प्रसाद से सजे सूपे को मंडप के नीचे रखकर पूजा शरू की जाती है.

जैसे ही सूर्य देव अस्त होने वाले होते हैं, उसी समय नदी या तालाब जिसके किनारे पूजा हो रही है, जाकर व्रती अस्तांचलगामी सूर्य को अर्घ्य देते हैं. बिना सिलाई का सिर पर एक वस्त्र ही व्रती धारण करते हैं और पानी में डुबकी लगाने के बाद गीले शरीर मे ही अर्घ्य देना होना है. इस दौरान परिवार के लोग पानी व दूध से व्रती को अर्घ्य दिलाते हैं. अर्घ्य देने के बाद व्रती पूरी रात गन्ने से बनाए उसी मंडप के सामने पूरी रात बिना सोए बैठकर गुजारते हैं और सूर्योदय का इंतजार करते हैं.

उदीयमान सूर्य को अर्घ्य
व्रत का चौथा दिन सुबह जैसे ही सूर्योदय होने वाला होता है, फिर व्रती नदी के घाट पर डुबकी लगाते हैं. सूर्य देव के उदय होने की प्रतीक्षा करते हैं और सूर्योदय होते ही फिर उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. फिर गन्ने के मंडप के नीचे पूजन-हवन कर प्रसाद वितरण किया जाता है. यहां पर छठ व्रत सम्पन्न होता है और छठ घाट से वापस घर आने के बाद पांचवे दिन दोपहर तक व्रती अपने व्रत का पारण करते हैं.

आयोजकों की ओर से होती है विशेष व्यवस्था
इस पर्व की मान्यताएं इतनी है की जो लोग इस व्रत को पीढ़ियों नही जानते वो अब व्रतियों की सेवा कर के ही पुण्य लाभ लेने की मंशा रखते हैं और लगभग सभी छठ घाटों पर व्रतियों के लिये इतने विशेष प्रबंध किये जाते हैं कि ठंड या अन्य किसी चीज से किसी भी व्रती को कोई तकलीफ नहीं होती. अम्बिकापुर के सबसे बड़े छठ घाट शंकर घाट पर महामाया सेवा समिति व घुनघुट्टा पर श्याम सेवा समिति के द्वारा भी हर वर्ष विशेष व्यवस्था की जाती है. पूरे प्रांगण में टेंट पांडाल लगा दिए जाते हैं. जमीन पर साफ दरी व गद्दे बिछाए जाते हैं. व्रतियों से साथ आए उनके परिजनों व बच्चों के लिए चाय, दूध व अन्य व्यवस्था भी आयोजन समिति के द्वारा की जाती है. इस वर्ष भी छठ व्रत के लिए भव्य तैयारी की गई है.


प्रशासन ने तैयारियों का लिया जायजा
जिला प्रशासन की ओर से कलेक्टर संजीव झा, एसपी, जिला पंचायत सीईओ, एडिशनल एसपी समेत तमाम आला अधिकारियों ने समस्त छठ घाटों का निरीक्षण किया. समितियों की तैयारियों का जायजा लिया. इस दौरान कलेक्टर ने अपने आदेश पर सख्ती भी हटा दी है. छठ घाट पर वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट की अनिवार्यता को स्वेच्छिक कर दिया है. वहीं, फायर सेफ्टी, एनडीआरफ, पुलिस व्यवस्था, यातायात व्यवस्था सहित तमाम इंतजामों का पालन करने संबंधित अधिकारियों को कलेक्टर ने निर्देश दिया है.