गरियाबंद (सेंट्रल छत्तीसगढ़): पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और उनकी पत्नी सोनिया गांधी को अपनी झोपड़ी में बिठाकर कंदमूल खिलाने वाली बल्दी बाई की बहू और पोती की मौत हो गई थी. प्रशासन दो मौत और कर्ज लेकर अस्पताल का बिल भुगतान कर लाश छुड़ाने के बाद जागा है. बल्दी बाई को अब महज 50000 रुपये की सहायता राशि दी गई है.
बल्दी बाई को दी गई 50 हजार की सहायता राशिराजीव गांधी के समय सुर्खियों में रहीं बल्दीबाई की बहू और पोती ‘सिस्टम’ की शिकारअभनपुर के एक निजी अस्पताल में शासन की आयुष्मान भारत योजना और डॉ खूबचंद बघेल स्वास्थ्य योजना का लाभ नहीं मिल पाया था. इसके कारण बल्दी बाई और उसके परिवार को परेशानियों का सामना करना पड़ा. दो मौत के बाद प्रशासन की टीम कुल्हाड़ी घाट गांव पहुंची. परिवार को 50 हजार रुपये की सहायता राशि दी. इसके अलावा कर्ज लेकर जमा किए गए बिल को भी वापस दिलाने का आश्वासन दिया. इसके अलावा अस्पताल पर कार्रवाई का भरोसा दिलाया गया है.राजीव गांधी के समय सुर्खियों में रहीं बल्दीबाई की बहू और पोती ‘सिस्टम’ की शिकारधुर नक्सल प्रभावित कुल्हाड़ी घाटअस्पताल का बिल चुकाने के लिए पैसे का इंतजाम करने में देरी के कारण अस्पताल में शव काफी देर तक पड़ा था. हालांकि, विशेष पिछड़ी जनजाति के लोगों ने परिवारवालों के साथ मिलकर शवों का अंतिम संस्कार किया. धुर नक्सल प्रभावित और बीहड़ जंगलों वाले इलाके कुल्हाड़ी घाट में कभी देश के प्रधानमंत्री राजीव गांधी और सोनिया गांधी खुद पहुंचे थे. वहां उन्होंने गांव की बल्दी बाई के घर कंदमूल भी खाए थे. आज भी ये इलाका विकसित नहीं हो पाया है और न ही बल्दी बाई के परिवार की स्थिति में कोई सुधर आया है.केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं का नहीं मिल रहा लाभअब सवाल ये उठता है कि केंद्र सरकार की आयुष्मान भारत और राज्य सरकार की स्मार्ट कार्ड जैसी योजनाएं अगर जरूरतमंदों तक नहीं पहुंच पा रही है, तो इनका मतलब क्या है. महज कागजों पर लिखी इन योजनाओं की जमीनी हकीकत कुछ और ही है.पूर्व सीएम रमन ने उठाए सवालपूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह ने भी इस घटना के बाद सरकार पर निशाना साधा था. उन्होंने ट्वीट कर पूछा कि कहां है यूनिवर्सल हेल्थ स्कीम ? कहां है खूबचंद बघेल स्वास्थ्य सहायता योजना ?.अब सरकारी योजनाओं का लाभ इस परिवार को आखिर क्यों नहीं मिला. अस्पताल प्रबंधन ने रुपयों के लिए लाश को परिजनों को देने से इंकार कर दिया. इसके बाद परिवार को कर्ज लेकर अस्पताल का बिल चुकाना पड़ा. प्रशासन अब जितना सक्रिय हुआ है, अगर उसका 10 प्रतिशत पहले एक्टिव रहता तो शायद बच्चे और मां दोनों की जान शायद बच सकती थी. अब ये सभी सवाल प्रशासन पर भारी पड़ रहे हैं. देखने वाली बात है कि लापरवाहों पर कार्रवाई होती है नहीं.