देवउठनी एकादशी पर भी खाली हाथ बैठे पूजन सामग्री बेचने वाले ग्राहकों का इंतजार..

कोरबा (सेंट्रल छत्तीसगढ़) हिमांशु डिक्सेना:– देवउठनी एकादशी आज मनाई जा रही है. कुछ जगहों पर इसे छोटी दिवाली के रूप में मनाया जाता है. आज के दिन तुलसी विवाह होता है. ये एकादशी हरि प्रबोधिनी और देवोत्थान के नाम से भी जाना जाती है. देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु निंद्रा के बाद उठते हैं इसलिए इसे देवोत्थान एकादशी भी कहते हैं. इस त्योहार के लिए राजधानी के बाजारों में फल, फूल, सब्जी और मिठाई दुकानें सज गई हैं लेकिन ग्राहकों के इंतजार में हैं. कोरोना वायरस हर रंग फीके कर रहा है. इस त्योहार की रौनक भी बाजार में नहीं नजर आ रही है.

dev uthani ekadashi celebrated on 25 september in chhattisgarh

फल बेजती महिला

छत्तीसगढ़ में आज के दिन भाजी और गन्ने का महत्तव होता है. लेकिन इस साल कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण के कारण बाजार से पूजन सामग्री खरीदी करने वालों की संख्या में भी कमी दिख रही है. दुकान सजाए बैठे लोग ग्राहकों के इंतजार में हैं.

कोरोना की वजह से नहीं दिखी रौनक

देवउठनी एकादशी के दिन गन्नों से बनाए मंडप के नीचे भगवान विष्णु और माता तुसली की विवाह किया जाता है. तुलसी का विवाह गोधुलि बेला में संपन्न कराया जाता है. बुधवार की शाम को साढ़े पांच बजे से शाम 7 बजे तक का मुहूर्त है. इस समय तुलसी का विवाह शालिग्राम से कराया जाता है. पूजा में मूली, शकरकंद, सिंघाड़ा, आंवला, बेर, फल, फूल, मौली, धागा, चंदन, सिंदूर, अक्षत और सुहाग की वस्तुएं पूजन सामग्री उपयोग की जाती हैं.

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शुरू होंगे मांगलिक कार्य
इस एकादशी को देवउठनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु आषाढ़ के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देव शयन करते हैं. इस दिन से ही चतुर्मास की शुरुआत होती है. इस साल 1 जुलाई से चतुर्मास की शुरुआत होती है. जिसके बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन भगवान विष्णु के विश्राम करने का समय पूर्ण होता है. भगवान विष्णु के जागने पर चतुर्मास का समापन हो जाता है. 4 महीने का चयन काल होने के कारण इसे चतुर्मास कहा गया है. चतुर्मास में मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाती है. देवोत्थान यानी देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु के जागने के बाद सभी प्रकार के मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं.