नई दिल्ली (सेन्ट्रल छत्तीसगढ़) :- कोविड-19 महामारी की वजह से जिन विचाराधीन कैदियों की जमानत की अवधि बढ़ाई गई थी, उन्हें तत्काल राजधानी की जेलों में लौटने की जरूरत नहीं है. उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की पीठ ने बुधवार वको दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश पर लगाई गई रोक एक सप्ताह के लिए बढ़ा दी.
उच्च न्यायालय ने 20 अक्टूबर, 2020 को इन कैदियों को चरणबद्ध तरीके से जेल प्राधिकारियों के समक्ष समर्पण करने का निर्देश दिया था. शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के उस आदेश पर रोक लगा दी थी जिसमें उन सभी विचाराधीन कैदियों को दो से 13 नवंबर के दौरान चरणबद्ध तरीके से समर्पण करने का निर्देश दिया गया था, जिनकी महामारी की वजह से जमानत की अवधि बढ़ाई गई थी.
‘नेशनल फोरम ऑन प्रिजन रिफॉर्म्स’ की है याचिका
वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोन्साल्विज ने ‘नेशनल फोरम ऑन प्रिजन रिफॉर्म्स’ की ओर से इस मामले का उल्लेख किया था. संगठन का तर्क था कि उच्च न्यायालय के निर्देश उसके 23 मार्च 2020 के आदेश की भावना के पूरी तरह खिलाफ हैं और उसने शीर्ष अदालत द्वरा नियुक्त इस अदालत की उच्चाधिकार समिति की आठ सिफारिशों को दरकिनार करते हुए यह आदेश दिया है. शीर्ष अदालत ने 29 अक्टूबर को उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर दिल्ली सरकार को नोटिस भी जारी किया और उसका जवाब मांगा था.
हाई कोर्ट ने ये दिया था आदेश
उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था कि कोविड-19 लॉकडाउन से पहले और इसके दौरान जमानत और अंतरिम रोक बढ़ाने के आदेश 31 अक्टूबर के बाद प्रभावी नहीं रहेंगे. उच्च न्यायालय ने यह भी कहा था कि उसका आदेश उन 356 कैदियों पर भी लागू होगा जिन्हें उच्च न्यायालय ने जमानत दी थी और उन्हें 13 नवंबर तक जेल प्राधिकारियों के समक्ष समर्पण करना होगा