कोरबा : निर्मला दीदी का छ्त्तीसगढ़ श्रमजीवी पत्रकार ने किया अंतरार्ष्ट्रीय महिला दिवस पर सम्मानित..10वीं में फेल होने के बाद आत्मनिर्भर बनने कुक बन गईं निर्मला दीदी, फिर गांव लौटकर जनजाति की महिलाओं को सक्षम बनाने रोजगार से जोड़ा.

कोरबा ( सेन्ट्रल छत्तीसगढ़ ) : वनांचल के गांवों में पिछड़ी जनजाति के लोगों को आगे बढ़ाने काम कर रहीं निर्मला कुजूर की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं है। 10वीं में फेल होने के बाद आत्मनिर्भर बनने की ठानी। कृषक परिवार होने के बाद भी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने से गांव में मितानिन प्रेरक बनकर काम करने लगी। जब लगा कि महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनाने की जरूरत है तो उसने स्व सहायता समूह से महिलाओं को जोड़ा। इसके बाद वह स्वयं भी अपनी आर्थिक दशा सुधारने मुंबई में मिशन होलीक्रॉस सेंटर में रहकर कुक का काम करने लगीं। निर्मला दीदी की संघर्ष भरे जीवन से प्रभावित छ्त्तीसगढ़ श्रमजीवी पत्रकार संघ कटघोरा ने आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर सम्मानित किया और उन्हें उज्ज्वल भविष्य के लिए शुभकामनाएं दी। इस मौके पर संघ के कटघोरा अध्यक्ष शशिकांत डिक्सेना, सचिव आशुतोष शर्मा, ब्लॉक प्रवक्ता आलोक पांडेय प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।

बतादें के मुम्बई से लौटकर वह पिछड़ी जनजाति बिरहोर, पंडो, धनुहार व अन्य आदिवासी समाज के लोगों को आगे बढ़ाने काम कर रही हैं। निर्मला को लोग निर्मला दीदी के नाम पर जानते हैं। जिला मुख्यालय से 110 किलोमीटर दूर स्थित वनांचल गांव चंद्रौटी की निर्मला कुजूर के साथ वर्ष 2014 से एक हजार से अधिक महिलाएं जुड़कर काम कर रही हैं। शिक्षा के साथ स्वरोजगार के लिए महिलाओं को प्रेरित किया। जिसका नतीजा यह हुआ कि समूह बनाकर महिलाएं अलग-अलग क्षेत्रों में काम कर रही हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण संरक्षण, स्वावलंबन के लिए ग्रामीणों के बीच रहती हैं। आज भी वे सुबह होते ही किसी न किसी गांव में जाकर लोगों को प्रेरित करती हंै। 8 साल से समूहों की महिलाओं से हर माह 10 रुपए व एक किलो चावल के रूप में ग्राम कोष अनाज कोष जुटा रही हैं। यह राशि अब 30 लाख रुपए से अधिक हो गया। इस राशि से महिलाएं आपस में जरूरत पड़ने पर मदद करती हैं। जिसे एक समय अवधि में वापस लौटाना होता है। निर्मला ने अपनी छूटी शिक्षा को भी पूरा करते हुए ओपन स्कूल से 10वीं व 12वीं की परीक्षा भी पास की हैं। निर्मला अब एकता परिषद से जुड़कर काम कर रही है।

शिक्षा जरूरी इसलिए दीदी ने सैकड़ों बच्चों को पढ़ाया

कम पढ़ी लिखी होने के बाद भी निर्मला ग्रामीणों को विकास की मुख्य धारा से कैसे जोड़ा जाए बखूबी जानती थीं। उन्होंने पहले गांव की महिलाएं जो अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजती थीं, उन्हें जोड़ा। संरक्षित जनजाति के 100 से अधिक बच्चे अब स्कूल जाकर पढ़ाई कर रहे हैं। इसमें सफल हुईं तो महिलाओं को स्वावलंबन के लिए जोड़ना शुरू किया।

महिलाएं स्वावलंबी होंगी तो परिवार सुखी होगा:

निर्मला का मानना है कि जब तक महिलाएं स्वावलंबी नहीं होंगी तब तक आगे नहीं बढ़ सकती। इसके लिए उन्होंने पसान, बनखेता, चंद्रौटा, खमारिया, खोडरी, धनुहारपारा, पंडरीपानी, कुल्हाड़ीघाट, लोकड़हा, तेलियापार, बैरा, साढ़ामार, कोतमरा की महिलाओं को 30 से अधिक समूह से जोड़ा। अब महिलाएं रेडी टू ईट बनाने के साथ सोसायटी चलाती हैं।

दीदी की पहल से बचा जंगल हर साल लगाते हैं पौधे

ग्राम पंचायत चंद्रौटीके सरपंच बुधवार सिंह कर्री पंचायत की सरपंच रोहणी मरावी, जिला पंचायत सदस्य रामनारायण उरेती ने बताया कि निर्मला दीदी ने बिना किसी सरकारी मदद के लोगों की तस्वीर बदलने में जुटी हैं। जंगल की सुरक्षा का मामला हो या पेड़ों को काटने से बचाने की बात उनका योगदान है। ग्रामीणों के साथ मिलकर हर पौधरोपण भी कराती हैं।

गांधीवादी विचारों से प्रेरित मिला अंतरराष्ट्रीय सम्मान

निर्मला कुजूर गांधीवादी विचारों की एकता परिषद से प्रेरित हैं। विश्व शांति व न्याय के लिए अक्टूबर 2019 से अक्टूबर 20 तक भारत से जेनेवा तक की यात्रा निकली। जो कोविड-19 के कारण पूरी तो नहीं हुई, बीच में ही यात्रा रोकनी पड़ी। यात्रा में शामिल निर्मला समेत देश की 9 अन्य संघर्षशील महिलाओं को जेनेवा की डब्ल्यूडबल्यूएफएस नामक संस्थान ने सम्मानित किया।