कोरबा (सेंट्रल छत्तीसगढ़): सीएसईबी ग्राउंड स्थित रानी धनराज कुंवर नगर में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने 55वे प्रांतीय अधिवेशन का आयोजन किया है। तीन दिवसीय अधिवेशन के दूसरे दिन के प्रथम सत्र का शुभारंभ दीप प्रज्वलन के साथ किया गया । मध्य क्षेत्र संगठन मंत्री, अभाविप चेतस सुखाड़िया ने इस अवसर पर भारत की वास्तविक पहचान विषय पर कहा की शिक्षा ऐसी हो जो विद्यार्थियों को अपनी मिट्टी, समाज और देश के साथ जोड़े और मनुष्यों को बेहतर व्यवहार करने की सीख दे। उनके भीतर सब गुणों का विकास हो और वे अपनी क्षमता से राष्ट्र के लिए बेहतर काम कर सके यह आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है।
भारत माता, विद्यादायिनी सरस्वती और स्वामी विवेकानंद के चित्र पर माल्यार्पण करने के साथ आज के दूसरे सत्र का शुभारंभ हुआ। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के क्षेत्रीय पदाधिकारी चेतनस सुखाड़िया ने अपनी बात रखते हुए आगे कहा कि सभी के जीवन में शिक्षा का एक अपना विशिष्ट स्थान है जो व्यक्ति को हर दृष्टिकोण से बेहतर बनाने का काम करती है। इसलिए इस दिशा को लेकर अच्छे काम करने की आवश्यकता महसूस की जा रही है। चिंता इस बात की है कि अतीत में जो गलतियां हुई उनके कारण अजीब स्थिति निर्मित हुई और उसके बहुत सारे दुष्परिणाम युवा पीढ़ी के साथ-साथ देश को भुगतने पड़े। मैकाले के समय की शिक्षा नीति को दोषपूर्ण बताने के साथ उन्होंने उदाहरण के साथ कई तस्वीर सामने रखी। उनका कहना था कि किसी भी देश के लिए शिक्षा नीति के गुण और दोष बहुत ज्यादा मायने रखते हैं। ऐसे में स्वाभाविक है कि जहां भी शिक्षा नीति दोषपूर्ण होगी, उसके बुरे परिणाम आखिरकार हमारे युवाओं को भी झेलना होगा। यही गलतियों को सुधारने के लिए वर्तमान में कई प्रकार के परिवर्तन करने के साथ दिशा को बेहतर करने की कोशिश की जा रही है।
चेतस सुखाड़िया ने भारत के ज्ञान कौशल परंपरा पर भी अपनी बात रखी। उन्होंने बताया कि गणित के सूत्र से लेकर अनुसंधान के क्षेत्र में अपनी एक अलग परंपरा रही है जिसने देश को बहुत सारी उपलब्धियां दी। विभिन्न अनुसंधान करने का श्रेय भारत के मनीषियों वैज्ञानिकों को जाता है जिन्होंने बेहतर मार्गदर्शन दिया। उन्होंने बताया कि सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी को लेकर आज भी हमारे लोगों को भलीभांति जानकारी है क्योंकि हमारे प्राचीन ग्रंथों में जानकारी दी गई है। इसलिए शिक्षा के अंदर सतत शिक्षा प्रणाली विकसित करने पर लगातार जोर दिया जा रहा है। विषय के विविध संदर्भ में अपने विचार रखते हुए आपने कहा कि संस्कृति को सभी भाषाओं की जननी कहा गया है। इसलिए भारतीय संस्कृति को समूचे क्षेत्र के लिए आदर्श मानक माना गया है।
वैश्विक परिदृश्य और कालगणना को लेकर अपनी दृष्टि देते हुए चेतस सुखाड़िया ने कहां की कालखंड के सबसे न्यूनतम अंश से लेकर उसके आगे के चक्र की दिशा में जो काम किया गया उसमें भारत के अनुसंधानकर्ता ने विशेष भूमिका निभाई इसलिए भारतीय बुद्धिमत्ता का हर कोई लोहा मानता है। उन्होंने बताया कि रॉकेट का अविष्कार करने वाले भी हमारे भारतीय लोग थे। इस बारे में कई प्रकार की भ्रांतियां लोगों में निर्मित थी जिसे दूर किया जाना संभव हो रहा है। कर्नाटक के विजय नगर और हम्पी की सुविकसित स्थापत्य कला की चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि हमारी गौरवशाली परंपरा आज भी पूरी मजबूती के साथ स्थापित हैं और यह बताने के लिए पर्याप्त है कि अतीत से लेकर वर्तमान तक हम कितने मजबूत है। इसलिए देश के प्राचीन इतिहास और संस्कृति के साथ-साथ सभ्यता व विकास की पूरी कड़ी को समझने की आवश्यकता है।
अमेरिका की प्रगति में भारत का योगदान
चेतस सुखाड़िया ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए इस बात पर भी फोकस किया कि अमेरिका जैसे प्रगतिशील देश की प्रगति का मानक मुख्य रूप से भारत है और यहां की प्रतिभाओं ने वहां के विकास के लिए शिक्षा, चिकित्सा, इलेक्ट्रॉनिक्स, अनुसंधान के साथ-साथ व्यावसायिक क्षेत्र में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया है। एक समय भारत के राष्ट्रपति रहे बराक ओबामा ने खुद एक मौके पर इस बात को स्वीकार किया कि हमारे यहां जो चतुर्दिक विकास हुआ है उसके मामले में भारतीय मेधा की अपनी विशेष भूमिका रही है और यह विशेष सभी क्षेत्रों में रेखांकित होता रहा है। इसलिए हमारा मानना है कि अगर भारत की प्रतिभाओं को पूरा सम्मान प्राप्त हो तो वे अपने देश को बेहतर ऊंचाई तक ले जाने के लिए अपनी खास भूमिका निभा सकती है।