कोरबा/दीपका 19 अगस्त 2022 ( सेंट्रल छत्तीसगढ़ ) : छत्तीसगढ़ के सभी नगरीय क्षेत्रों में आज कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर ’कृष्ण कुंज’ विकसित किए गुए। आज दीपका नगर पालिका क्षेत्र में कटघोरा विधायक पुरुषोत्तम कँवर के आतिथ्य में कृष्ण कुंज में बरगद, पीपल, नीम और कदंब जैसे सांस्कृतिक महत्व के जीवनोपयोगी वृक्षों का रोपण किया गया। बतादें की छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सभी कलेक्टरों को ’कृष्ण कुंज’ विकसित करने के लिए वन विभाग को न्यूनतम एक एकड़ भूमि का आवंटन करने के निर्देश दिया था। अब तक राज्य के 121 स्थलों को ’कृष्ण कुंज’ के लिए चिन्हांकित कर लिया गया है। वृक्षारोपण की तैयारी भी बड़ी उत्साह के साथ आज कृष्ण जन्माष्टमी में पूरे राज्य में ’कृष्ण कुंज’ के लिए चिन्हित स्थलों पर वृक्षों का रोपण प्रारंभ किया गया। इस मौके पर कटघोरा विधायक व राज्यमंत्री दर्जा प्राप्त पुरुषोत्तम कँवर के साथ साथ कटघोरा DFO प्रेमलता यादव, नगर पालिका दीपका की अध्यक्षा संतोषी दीवान, अनुविभागीय अधिकारी राजस्व कटघोरा कौशल प्रसाद तेंदुलकर, विधायक प्रतिनधि विशाल शुक्ला, CMO भोला प्रसाद ठाकुर, पार्षद संगीता साहू, एल्डरमेन हरिनारायण यादव मौजूद रहे।
यहाँ यह बताना लाज़मी होगा कि पर्यावरण की दृष्टि से महत्वपूर्ण ये पेड़ जैव विविधता और इकोसिस्टम के लिए भी अहम हैं। जहां एक तरफ प्राकृतिक औषधि के रूप में नीम को सर्वोत्तम माना गया है, तो वहीं बरगद को ऑक्सीजन का खजाना भी कहा जाता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार पीपल के वृक्ष पर सभी देवी-देवताओं का वास होता है। यानी कि यह कई गुणों से भरपूर है। लेकिन शहरीकरण के दौर में हमारे यह सांस्कृतिक धरोहर कहीं खोते जा रहे हैं। शहरों में पेड़-पौधों को बचाने, बेहतर इकोसिस्टम को विकसित करने और सांस्कृतिक महत्व के इन पेड़ों को फिर से गुलज़ार करने की मुहिम छत्तीसगढ़ में शुरू की जा रही है।
कटघोरा विधायक श्री कँवर ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की कृष्ण कुंज योजना के उद्देश्यों को लेकर कहा कि, वृक्षारोपण को जन-जन से जोड़ने, अपने सांस्कृतिक विरासत को सहेजने और उन्हें विशिष्ट पहचान देने के लिए इसका नाम ‘कृष्ण-कुंज’ रखा गया है। विगत वर्षों में शहरीकरण की वजह से हो रही अंधाधुंध पेड़ों की कटाई से इन पेड़ों का अस्तित्व खत्म होता जा रहा है। आने वाली पीढ़ियाें को इन पेड़ों के महत्व से जोड़ने के लिए ‘कृष्ण-कुंज’ की पहल की जा रही है।
सांस्कृतिक विविधताओं से परिपूर्ण छत्तीसगढ़ का हर एक पर्व प्रकृति और आदिम संस्कृति से जुड़ा हुआ है। इनके संरक्षण के लिए ही यहां के तीज-त्यौहारों को आम लोगों से जोड़ा गया और अब ‘कृष्ण-कुंज’ योजना के माध्यम से इन सांस्कृतिक महत्व के पेड़ों को सहेजने की अनुकरणीय पहल हो रही है, जो आने वाली पीढिय़ों को एक बेहतर कल की ओर ले जाएगी और एक नए छत्तीसगढ़ के निर्माण में अपनी भूमिका निभाएगी।