कोयला खदानों में कमर्शियल माइनिंग के सरकार के फैसले से मजदूरों के पेट पर लात – नरेश देवांगन

कोरबा (सेन्ट्रल छत्तीसगढ़) अशुतोष शर्मा :-  सरकार के कमर्शियल माइनिंग के निर्णय से कोल इंडिया, सरकारी खानों एवं कार्यरत मजदूरों के लिए एक बड़ा आघात साबित होगा। जैसे रेलवे एयरपोर्ट के बाद कल मोदी सरकार ने देश की कोयला खदानों को देशी विदेशी पूंजीपतियों को आगे गिरवी रख दिया है, कल कोयला सेक्टर में अब सरकार कमर्शियल माइनिंग की इजाजत दे गयी है कोयला खनन में सरकार का एकाधिकार खत्म कर दिया गया है. साथ ही कोयला क्षेत्र में आधारभूत ढांचे के लिए 50 हजार करोड़ का खर्च भी किया जाएगा, शुरुआत में 50 कोल ब्लॉक को कमर्शल माइनिंग के लिए शुरू किया जा रहा है।

सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के कोयला उद्योग का एकाधिकार ख़त्म करके निजी कंपनियों को कोयला खनन और मार्केटिंग का अधिकार मिलते ही भारतीय कोयले के कारोबार को ललचायी नज़रों से देखने वाले देश-विदेश के पूंजीपतियों की मुरादें अंतत: पूरी हो गईं हैं। कोल इंडिया के मजदूरों के बुरे दिन ओर उद्योगपतियों के अच्छे दिन आ गए है।

नरेश देवांगन राष्ट्रीय संगठन सचिव- राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस इंटक ने बतया की दशक में कोयले की खदानों का राष्ट्रीयकरण करने के बाद 1973 में कोल इंडिया की स्थापना की गई थी। राष्ट्रीयकरण से पहले कोयले का खनन निजी हाथों में था। उस समय मजूदरों के शोषण और अवैज्ञानिक खनन ने सरकार को चिंतित कर दिया था। कोयला खदानों में दुर्घटनाएं भी आम बात हुआ करती थीं, पिछले साल मेघालय में निजी कोयला खदान में हुई दुर्घटना हम सबको याद है दरअसल कोयला खदानों के राष्ट्रीयकरण का मुख्य उद्देश्य ही अपव्ययी, चयनात्मक और विध्वंसक खनन को रोकने के अलावा कोयला संसाधनों का सुनियोजित विकास और सुरक्षा मानकों में सुधार करना था।

लेकिन इस सरकार के आते ही तेजी से देश के हर महत्वपूर्ण उद्योग का प्राइवेटाइजेशन शुरू हो गया मार्च 2015 को संसद ने कोयला खनन (विशेष प्रावधान) विधेयक पास किया इस विधेयक में निजी क्षेत्र द्वारा व्यवसायिक खनन का प्रावधान था। इसी विधेयक ने कोल इंडिया का एकाधिकार खत्म करने और खनन में निजी भागीदारी सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाई। ओर आज बची खुची सभी बाधाओं को समाप्त कर दिया गया

अडानी ओर वेदांता रिसोर्सेज के अलावा बीएचपी, रियो टिंटो और ग्लेनकोर से लेकर एग्लो अमेरिकन जैसी नामचीन बहुराष्ट्रीय खनन कंपनियां भारतीय कोयला खानों पर अधिकार जमाने को तैयार है और भारत की महारत्न कम्पनी कोल इंडिया अपनी आखिरी साँसे गिनने जा रही है

कोयला खदान के उदारीकरण के बाद विदेशी खनन फर्में आती हैं तो ज्यादा संभावना है कि खननकर्ता इसमें मशीनों का इस्तेमाल बढ़ाएंगे और इस क्षेत्र में संभवत: नौकरियों का सृजन नहीं होगा, जबकि उत्पादन में वृद्धि हो सकती है।

अब यह बात तय है कि कुछ ही समय बाद मोदी सरकार 400 रुपये प्रति टन लगने वाले कार्बन टैक्स को हटाने को तैयार हो जाएगी।

कोयला उद्योग का यह निजीकरण  को बहुत शातिराना तरीके से अंजाम दिया गया है  कोल इंडिया लिमिटेड ने “कोल विजन– 2030” जारी किया था। उसमें कहा गया था कि मौजूदा व्यवस्था में साल 2020 तक देश में 10 करोड़ टन और साल 2030 तक 19 करोड़ टन तक कोयले का उत्पादन होगा। इस अवधि में कोयले की मांग साढ़े 11 करोड़ टन से लेकर साढ़े 17 करोड़ टन तक रहेगी। आंकड़ों से स्पष्ट है कि कोयला उद्योग में निजी भागीदारी के बिना ही देश की जरूरतें पूरी होती रहती….. लेकिन जानबूझकर ऊंचे लक्ष्य निर्धारित किये गए ताकि यह दिखाया जाए कि कोल इंडिया सही तरीके से काम नही कर रहा है ओर कोयला उद्योग के निजीकरण की जरूरत है…….

मोदी सरकार देश को ‘आत्मनिर्भर’ नही बल्कि देशी विदेशी पूंजीपतियों पर निर्भर बनाना चाहती है। सरकार का यह निर्णय मजदूरों के ऊपर बहुत बड़ा आघात है और उनके पेट पर लात है । केंद्र सरकार के  6 साल  की अवधि में ऐसा कोई भी  प्रोजेक्ट  नहीं आया  जिससे कि रोजगार और इस प्रदेश के श्रमिकों को फायदा प्राप्त प्राप्त हो  बल्कि  जो रोजगार के अवसर थे वहीं समाप्त होते गए  इससे देशवासियों को यह सोचना पड़ेगा कि देश आगे बढ़ रहा है या पीछे।


इसके खिलाफ में केंद्रीय श्रम संगठन के संयुक्त मोर्चा द्वारा आगामी 22 मई को धरना प्रदर्शन आंदोलन अनशन करेगी।

अशुतोष शर्मा की रिपोर्ट…..