कृषि विरोधी कानूनों के खिलाफ ‘काला दिवस’ के रूप में मनाया गया जले मोदी सरकार के पुतले, किसान मजदूर संगठनों ने लिया राज्य सरकार को भी निशाने में, कहा : नहीं टिक सकती किसानों-आदिवासियों से टकराव लेने वाली कोई सरकार

कोरबा (सेंट्रल छत्तीसगढ़)दिलीप नेताम :- संयुक्त किसान मोर्चा औरअखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के देशव्यापी आह्वान के तहत आज मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी,छत्तीसगढ़ किसान सभा,सीटू,जनवादी महिला समिति के आह्वान पर मोदी सरकार द्वारा बनाये गए तीन किसान विरोधी कानूनों और चार मजदूर विरोधी श्रम संहिताओं को निरस्त करने और सी-2 लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य देने का कानून बनाने, कोरोना महामारी से निपटने सभी लोगों को मुफ्त टीका लगाने तथा ग्राम स्तर पर बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने, गरीब परिवारों को मुफ्त राशन और नगद सहायता देने आदि प्रमुख मांगों पर आज जिले के गांव गांव में काले झंडे फहराए गए तथा मोदी सरकार के पुतले जलाए गए।आंदोलन के समर्थन में आज गांव गांव में सैकड़ों कार्यकर्ता सड़कों पर उतरे।
विरोध प्रदर्शन में प्रमुख रूप से माकपा जिला सचिव प्रशांत झा माकपा पार्षद राजकुमारी कंवर, सुरती कुलदीप सीटू जिला महासचिव वी एम मनोहर,जनाराम कर्ष,जनक दास किसान सभा के जिलाध्यक्ष जवाहर सिंह कंवर, प्रताप दास, दीपक साहू,संजय यादव,अजय अग्रवाल जनवादी महिला समिति की प्रदेश संयोजक धनबाई कुलदीप,देव कुंवर गांव गांव में प्रदर्शन का नेतृत्व किए।

मोदी सरकार के कृषि और मजदूर विरोधी कानूनों के खिलाफ जिले में माकपा, किसान सभा,सीटू,महिला समिति के बैनर तले किसान और मजदूर एकजुट हुए हैं और मडवाढ़ोढा,गंगानगर, अवधनगर, पुरैना,मोंगरा बस्ती,बांकी बस्ती, भैरोताल, कपाटमुड़ा,भटोरा,बरभांटा आदि गांवों-कस्बों में, घरों और वाहनों पर काले झंडे लगाए और मोदी सरकार के पुतले जलाए ।

माकपा जिला सचिव प्रशांत झा,सीटू के महासचिव वी एम मनोहर, किसान सभा के जिला अध्यक्ष जवाहर सिंह कंवर ने इस सफल आंदोलन के लिए किसान समुदाय और आम जनता का आभार व्यक्त किया है और कहा है कि देश प्रदेश और जिले की जनता ने इन कानूनों के खिलाफ जो तीखा प्रतिवाद दर्ज किया है, उससे स्पष्ट है कि मोदी सरकार के पास इन जनविरोधी कानूनों को निरस्त करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है।

माकपा जिला सचिव प्रशांत झा ने आरोप लगाया है कि इन कॉर्पोरेटपरस्त और कृषि विरोधी कानूनों का असली मकसद न्यूनतम समर्थन मूल्य और सार्वजनिक वितरण प्रणाली की व्यवस्था से छुटकारा पाना है। उन्होंने कहा कि देश मे खाद्य तेलों की कीमतों में हुई 50% से ज्यादा की वृद्धि का इन कानूनों से सीधा संबंध है। ये कानून व्यापारियों को असीमित मात्रा में खाद्यान्न जमा करने की और कंपनियों को एक रुपये का माल अगले साल दो रुपये में और उसके अगले साल चार रुपये में बेचने की कानूनी इजाजत देते हैं। इन कानूनों के बनने के कुछ दिनों के अंदर ही कालाबाज़ारी और जमाखोरी बढ़ गई है और बाजार की महंगाई में आग लग है। इसलिए ये किसानों, ग्रामीण गरीबों और आम जनता की बर्बादी का कानून है।

किसान सभा के जिला अध्यक्ष जवाहर सिंह कंवर ने बताया कि कांग्रेस सरकार की नीतियों के खिलाफ भी छत्तीसगढ़ के किसान आंदोलित हैं और उन्होंने आज सुकमा जिले के सिलगेर में आदिवासी किसानों पर की गई गोलीबारी की निंदा करते हुए इसकी उच्चस्तरीय न्यायिक जांच कराने और दोषी अधिकारियों को दंडित करने की भी मांग की है। वनोपजों की सरकारी खरीदी पुनः शुरू करने और आदिवासी किसानों को व्यापारियों-बिचौलियों की लूट से बचाने का मुद्दा भी आज के किसान आंदोलन का एक प्रमुख मुद्दा था। उन्होंने कहा कि कॉरपोरेटों की तिजोरी भरने के लिए देश के किसानों से टकराव लेने वाली कोई सरकार टिक नहीं सकती।
सीटू के जिला महासचिव वीएम मनोहर ने कहा कि तीनों किसान विरोधी काले कानून और चार मजदूर विरोधी श्रम संहिताओं को तत्काल निरस्त किया जाए।अगर सरकार इन काले कानूनों को जल्द वापस नहीं लेगी तो लॉक डाउन के बाद जिले में गांव गांव कालोनियों में जाकर किसान मजदूरों को काले कानूनों के खिलाफ लामबंद करके बड़ा आंदोलन करने की रूप रेखा भी बनाएंगे।
किसान सभा के नेता दीपक साहू ने कहा की करोना काल में जितने लोगों की मौत हुई है वे महामारी से कम, निजीकरण के कारण इस सरकार की बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था से ज्यादे मरें हैं। इन मौतों ने सरकार के चेहरे को बेनकाब और राजा को नंगा कर दिया है। करोना से बचाव के लिए संसद द्वारा आबंटित फंड का इस्तेमाल सार्वभौमिक टीकाकरण के लिए करने तथा गांव स्तर पर बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने, सभी गरीब परिवारों को 7500 रुपये प्रतिमाह आर्थिक मदद देने की मांग भी मोदी सरकार से की है। किसान और मजदूर संगठन के नेताओं ने कहा कि लॉक डाउन के बाद जिले में आंदोलन को और विस्तार किया जाएगा।