कांकेर(सेंट्रल छत्तीसगढ़): जिला मुख्यालय से 150 किमी दूर नक्सल प्रभावित क्षेत्र कोयलीबेड़ा (Koylibeda at Kanker district) में शिक्षा संबंधी समस्या को लेकर ग्रामीणों ने मोर्चा खोल दिया है. सोमवार को पालक-बालक संघर्ष समिति कोयलीबेड़ा (Parents-Child Conflict Committee Koylibeda) के बैनर तले 18 पंचायत के 68 गांवों के हजारों की संख्या में आदिवासी और बच्चे एकजुट हुए (protest of villagers regarding poor education system in Koylibeda). दूर गांवो से पहुंचे आदिवासियों ने कोयलीबेड़ा में रैली कर आमसभा को संबोधित करते नायब तहसीलदार के नाम से राज्यपाल को ज्ञापन सौंपा
संघर्ष समिति का आरोप है कि क्षेत्र में हजारों आदिवासी छात्र और छात्राओं को माध्यमिक या उच्च शिक्षा से महज इसलिए वंचित किया जा रहा है, क्योंकि वे जाति और निवास प्रमाण पत्र हासिल नहीं कर पा रहे हैं. 50 साल की राजस्व मिसल रिकार्ड और वंशावली के लिए सरपंच से लेकर पटवारी कलेक्टर, तहसीलदार के चक्कर काटने बावजूद स्थाई प्रमाण पत्र नहीं मिल रहा है. एक सतही सर्वेक्षण के मुताबित सिर्फ कोयलीबेड़ा ब्लॉक में ही 3000 से ज्यादा बच्चों ने पढ़ाई छोड़ दी है.
कोयलीबेड़ा में शिक्षा के पर्याप्त संसाधन नहीं
ग्रामीणों का आरोप है कि कोयलीबेड़ा के 18 पंचायतों में करीब 50,000 आबादी है. यहां कॉलेज और उच्च शिक्षा की व्यवस्था तक नहीं है. हायर सेकेंडरी स्कूल 2 हैं, जिसमें एक का भवन नहीं है. वहीं एक का भवन अधूरा है, हाई स्कूल 6 हैं, मिडिल स्कूल 24 हैं, प्रायमरी स्कूल 94 हैं. इतनी बड़ी आबादी के बावजूद यहां अब तक कॉलेज नहीं खुल पाया है.
छात्राओं के लिए सिर्फ एक हॉस्टल
कोयलीबेड़ा ब्लॉक में छात्राओं के लिए आश्रम और हॉस्टल एकमात्र है. इसी से ये अंदेशा लगा सकते हैं कि यहां शिक्षा क्षेत्र की स्थिति बहुत ही दयनीय है. इसलिए बच्चे शिक्षा से कोसों दूर होते जा रहे हैं. विगत दो सालों से कोरोना काल के दौरान से स्कूल बंद पड़े हैं, जिसकी वजह से बच्चे गलत दिशा में जा रहे हैं. कम उम्र के बच्चे बोरगाड़ी जा रहे हैं, तो वहीं लड़कियां अन्य काम के लिए पलायन कर रही हैं.
मोबाइल नेटवर्क ऑनलाइन क्लास के लिए बना बाधक
कोयलीबेड़ा ब्लॉक के सभी स्कूलों में विषय के अनुरूप शिक्षकों की नियुक्त नहीं है. वहीं व्यायाम शिक्षक (PTI) के साथ ही खेलकूद का मैदान दूसरी सुविधाओं का अभाव है. है. वहीं ऑनलाईन क्लास को लेकर यहां की स्थिति कुछ और है. एक तरफ जहां मोबाइल कनेक्टिविटी की दिक्कत है. वहीं आर्थिक तंगी के चलते ग्रामीण मोबाइल नहीं खरीद पा रहे हैं. जिसके चलते बच्चे शिक्षा से वंचित हो रहे हैं. वहीं स्कूलों में प्रयोगशाला, ग्रंथालय, कम्प्यूटर कोर्सेस की सुविधा नहीं है. शुद्ध पेयजल, टॉयलेट तक की व्यवस्था स्कूलों में नहीं हैं.
पाठ्यक्रम में शामिल हो आदिवासी जीवन शौली
ग्रामीणों का कहना है कि छात्र-छात्राओं के लिए हर आश्रम, छात्रवासों में शिक्षक और शिक्षिका की नियुक्ति होना चाहिए. छात्रवृति में वृद्धि होना चाहिए और इस तरह प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक के पाठ्यक्रम में आदिवासी जीवन शौली, सांस्कृतिक, भाषा, लोकगाथाओं को शामिल करना चाहिए. ग्रामीणों का कहना है कि अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने वाले आदिवासी वीर योद्वाओं की जीवनियां पर कोई शोध कार्य नहीं कराया गया. आदिवासी छात्र-छात्राओं को प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक किताबें, नोटबुक, अन्य जरूरी स्टेशनरी जरूर उपलब्ध कराना चाहिए. वहीं ट्यूशन शुल्क, परीक्षण शुल्क, ग्रंथालय शुल्क, प्रयोग शाला शुल्क आदि से पूरी छूट देना चाहिए. छात्रावासों में सभी स्तरों पर अंडा और पोषक आहर देना जबरन बंद किया गया था, उसे जारी रखना चाहिए.
आंधी में उड़ी स्कूल की छत, एक ही कमरे में पढ़ने को मजबूर छात्र