कोरबा/कटघोरा ( सेंट्रल छत्तीजगढ़) : कटघोरा में आयोजित श्री मद भागवत कथा में आचार्य श्री मृदुल कांत शास्त्री जी महाराज ने अपने व्यास पीठ से हिरण्यकश्यप के घोर तपस्या की कथा सुनाई कथा में बताया कि एक बार भगवान सुखदेव जी महाराज राजा परीक्षित को कथा सुनाते हुए बताते हैं कि एक बार हिरण्यकश्यप ने भगवान की घोर तपस्या की तभी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ब्रम्हा बोलते है की है हिरण्यकश्यप मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूँ वर मांगो क्या चाहते हो तभी हिरण्यकश्यप ने प्रभु से कहा कि हे प्रभु अगर आप मुझे वर देना ही चाहते हो तो ऐसा वर दे कि अमर हो जाऊं मैं कभी भी ना मरु तब भगवान ब्रम्हा ने कहा कि हे हिरण्यकश्यप तुम कोई दूसरा वर मांग लो क्योंकि यह सत्य है कि दुनिया मे सभी की मृत्यु तय है जो इस दुनिया मे आया है उसे एक नया एक दी जाना ही है।
तो ठीक है प्रभु आप मुझे ऐसा वर दे कि मुझे ना कोई जीव जंतु मार सके ना मैं घर के अंदर मरु व ना मैं घर के बाहर मरना मैं शस्त्र से मरु ना मैं आसमान में मरु ना मैं पाताल में मरु सुन भगवान ने उन्हें तथास्तु कहा तब हिरण्यकश्यप वरदान प्राप्त करने के पश्चात अपने पुत्र को शिक्षा प्राप्त करने के लिए आश्रम में भेज देते हैं वहां शिक्षक के द्वारा प्रहलाद को शिक्षा ग्रहण कराया जाता है एक बार हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद को अपने पास बुलाकर पूछते हैं कि पुत्र तुमने क्या क्या क्या शिक्षा ग्रहण किया है तब प्रहलाद ने कहा नारायण नारायण यह सुनकर गुस्से से उस शिक्षक को बुलाते हैं व पूछते हैं कि यह तुमने क्या शिक्षा दी है तब शिक्षक ने प्रहलाद से पूछा कि हे वत्स मैंने तो तुम्हे यह शिक्षा नही दी थी तो तुमने यह शिक्षा कहा से ग्रहण की तब प्रहलाद कहते हैं कि हे गुरुदेव यह शिक्षा तो मैंने अपने माता श्री के गर्भ में ही सिख लिया था और पुनः नारायण नारायण कहते हैं और अपने पिता से कहते हैं कि हे पिताश्री यह मेरे रोम रोम में बसा हुआ है।
यह सुनकर हिरण्यकश्यप क्रोधित हो जाते हैं और कहते हैं कि तुम मेरे दुश्मन का नाम लेते हो इस पर अपने सैनिकों को बुलाते हैं व प्रहलाद को पहाड़ से फेंकने का आदेश देते हैं तभी सभी सैनिक महराज का आदेश पाकर प्रहलाद को पहाड़ से नीचे फेंक देते हैं मगर प्रहलाद हंसते हुए खड़े हो जाते हैं उनके सैनिको के द्वारा कभी गर्म तेल तो कभी अग्नि में तो कभी सांपो के कुए में डालकर अनगिनत तरीके से प्रहलाद को मौत के घाट उतारना चाहा एमजीआर हर बार बच जाते हैं तभी हिरण्यकश्यप को अपनी बहन होलिका की याद आती है व तुरन्त होलिका को बुलाते हैं और उसे सारी कहानी बताते हैं तब होलिका कहती है आप बिलकुल भी चिंता ना करे आप केवल लकडी का एक कुंड तैयार करवाइये मैं उस कुंड में प्रहलाद को गोद मे लेकर बैठ जाऊंगी और सैनिको को बोल देना की उस कुंड में आग लगा दे उस आग में से मैं बच जाऊंगी व प्रहलाद जलकर भस्म हो जाएगा फिर सैनिको के द्वारा आग लगा दी जाती है तब प्रहलाद ने नारायण नारायण जपना शुरू किया फिर क्या होलिका उस आग में जल जाती है व प्रहलाद बच जाते हैं उसके बाद यह सब देख एक बार हिरण्यकश्यप प्रहलाद को अपने महल के खम्भे में बांध देते हैं और अपने पुत्र को कहते हैं कि लगता है तुम्हारी मौत मेरे हांथो से ही निश्चित किया गया है इसलिए अपने प्रभु को याद कर लो तब प्रहलाद हंसते हुए कहते हैं कि मेरे नारायण तो कण कण में बसे हुए हैं तो उन्हें क्या बुलाना तब हिरण्यकश्यप कहते है कि तो क्या इस खम्भे में भी है तुम्हारा नारायण तब प्रहलाद कहते हैं कि हां पिताजी मेरे प्रभु स्वामी नारायण इस खम्भे में भी है।
तब क्रोधित होकर हिरण्यकश्यप अपने तलवार से उस खम्भे के दो टुकड़े कर देता है तभी अचानक खम्भे से भगवान नारायण नरसिंह का अवतार लेकर प्रकट होते हैं और हिरण्यकश्यप को उठाकर द्वार के ठीक बीच मे ले जाते हैं और अपने जांघ में लेटाकर अपने हांथो के नाखूनों से हिरण्यकश्यप के पेट को फाड़ देते हैं व उसका वध कर देते हैं इस अवसर पर समस्त नगरवासियों के साँथ साँथ बाहर दूर दराज से आये श्रोता गणो ने कथा का रसपान किया ।