कोरबा/कटघोरा (सेंट्रल छत्तीसगढ़) : कटघोरा तहसील के तहसीलदार रोहित कुमार सिंह का पिछले दिनों एकमात्र तबादला आदेश निकालकर बीजापुर भेजे जाने के शासन के आदेश को निरस्त करने की मांग तेज हुई है।
इस संबंध में नगर पालिका परिषद कटघोरा के पार्षद रविन्द्र मोहन बघेल, किशोर दिवाकर, जय कंवर, बृहस्पति बरेठ, अली संजीदा और शैल बाई आर्मो के अलावा क्षेत्र के क्रिकेट संघ ने तबादला को सही करार नहीं दिया है।
इन्होंने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नाम संयुक्त कलेक्टर श्रीमती सूर्यकिरण तिवारी को ज्ञापन सौंप कर कहा है कि अप्रैल माह के प्रारंभ में जब कटघोरा शहर कोरोना से ग्रसित हो चुका था, उस भयावह स्थिति में हम सब में भाई-चारा और आत्मविश्वास जगाने में कटघोरा तहसीलदार रोहित कुमार सिंह की अहम भूमिका रही। इनके व्यवहार व कार्यकलापों से ही कटघोरा की स्थिति में काफी सुधार आया है और इनकी उपस्थिति कटघोरा तहसील के लिए अत्यंत प्रभावशाली है। रोहित सिंह जैसा तहसीलदार कटघोरा को देने के प्रति जहां मुख्यमंत्री का आभार प्रकट किया गया वहीं हाल ही में रोहित कुमार का तबादला बीजापुर किए जाने से कटघोरा की जनता में व्याप्त माायूसी और दु:ख का भी जिक्र किया गया। इन पार्षदों के द्वारा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सहित केबिनेट मंत्री जयसिंह अग्रवाल, कोरबा लोकसभा सांसद श्रीमती ज्योत्सना चरणदास महंत, कटघोरा विधायक पुरूषोत्तम कंवर, कलेक्टर श्रीमती किरण कौशल एवं कटघोरा एसडीएम को आग्रह पत्र सौंपा एवं प्रेषित कर तबादला निरस्त करने की मांग की गई है। क्षेत्र के क्रिकेट संघ द्वारा भी रोहित सिंह का तबादला रोकने का आग्रह किया गया है।
0 कोरोना संक्रमण के बीच तबादला की बात गले नहीं उतर रही.
बात करे हाल फिलहाल प्रदेश के सबसे पहले कोरोना हॉटस्पॉट के तौर पर उभरे कटघोरा की तो यहां भी एकाएक तबादला किसी के गले नहीं उतर रहा है। कोरोना संकट के बीच एसपी जेएस मीणा का ट्रांसफर, इसके बाद एएसपी यू उदयकिरण की विदाई और अब कटघोरा तहसीलदार रोहित सिंह के तबादले के एकल आदेश से प्रशासनिक महकमे में खलबली है। एकल आदेश होने के साथ ही मुख्यमंत्री का अनुमोदन और बस्तर संभाग में हुई नई पदस्थापना विपक्ष के कथित ट्रांसफर-पोस्टिंग उद्योग वाले आरोपों को मजबूत कर रहे हैं। हालांकि सरकार से जुड़े लोग इस तबादले को रूटीन प्रक्रिया बताते हुए पल्ला झाड़ने की कोशिश कर रहे हैं। बावजूद एक तहसीलदार के ट्रांसफर के लिए सरकार के शीर्ष संस्थान ने जिस प्रकिया के सहारा लिया वह सरकार के ट्रांसफर नीति पर भी सवाल खड़ा कर रहे हैं। जिस अफसर ने पहले ही चार वर्ष नक्सल प्रभावित नारायणपुर क्षेत्र में बिताए हों उन्हें फिर से पुरानी जगह भेजा जाना आश्चर्यजनक है।
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