आरक्षी केद्र मरवाही के सिपाहियों को सुविधाओं का अभाव, पन्नी और त्रिपाल तान कर दे रहे सेवा,

गौरेला पेंड्रा मरवाही (सेंट्रल छत्तीसगढ़) प्रयास कैवर्त:-पूरा भारत वर्ष वैश्विक आपदा कोरोनाकाल मे जूझ रहा है, कोरोनाकाल मे जहां सांसे थम सी गई है, जो सुरसा की तरह मुंह को चीरती हुई अपने हलाहल विष रूपी वायरस से पूरी दुनिया को निगल जाने को तैयार थी, तब हनुमानजी बनकर उस लड़ाई को रोकने के लिए 24 घंटे तैनात रहे हमारे सिपाही जो हर संभव चिकित्सक स्वच्छ कर्मी के साथ कंधे से कंधे मिलाकर चलते रहे , ताकि हम सुरक्षित रह सके,हमारे देश की सुरक्षा में 24 घंटे तैनात सिपाहियों का योगदान जिसे कभी भूलाया नहीं जा सकता है,

वही जिला गौरेला पेड्रा मरवाही के थाना मरवाही की एक तस्वीर निकल कर सामने आ रही है ,हम बात कर रहे हैं मरवाही थाना के सिपाहियों के रहने के आवास जो खंडहर में तब्दील हो चुकी है, मरवाही पुलिस के सिपाही पन्नी और त्रिपाल तान कर रहने को मजबूर,वही 24 घंटे सुरक्षा और सेवाएं देने वाले कोरोना वारियर्स मरवाही पुलिस के पास सुविधाओं का अभाव बना हुआ है, मरवाही पुलिस के रहने का आवास की तस्वीर खंडहर में तब्दील हो चुका है, मरवाही रक्षित के सिपाही पन्नी त्रिपाल तान कर सेवा दे रहे हैं, तस्वीरों में आप देख सकते हैं, देश की सुरक्षा में 24 घंटे तैनात पुलिस के सिपाही किस प्रकार की व्यवस्था में रहकर अपनी सेवा दे रहे हैं, कोरोना वारियर्स के तौर पर इन्हीं सिपाहियों के द्वारा 24 घंटे जनमानस की सेवा के लिए समर्पित रहते हैं, पर सुविधाओं के अभाव में रहकर भी जनमानस की सेवाएं और सुरक्षा से कभी पीछे नहीं हटते मरवाही पुलिस,

गौरतलब है कि नवगठित जिला गौरेला पेंड्रा मरवाही बनने के बाद विकास की गंगा बह रहा है, पर विकास की गंगोत्री का पानी देश की सुरक्षा के लिए 24 घंटे तैनात सिपाहियों के लिए अभी भी पूरा नहीं पहुंच पाया, विकास का खजाना क्षेत्र के लिए खोल दिया गया है, वहीं छत्तीसगढ़ की हाई प्रोफाइल और चर्चित विधानसभा सीट मरवाही जिसकी राजनीति की चर्चा दिल्ली की संसद तक चलती है, वे भला मरवाही पुलिस की व्यवस्थाओं पर बात कहा करते हैं,

आइए बात करते हैं अब पुलिस के कुछ खास योगदान पर

यहां एक और घटना का जिक्र जरूरी है जब 22 मार्च को प्रधानमंत्री के आह्वान पर पूरे देश में जनता कर्फ्यू लगाया गया था जो काफी सफल भी रहा, परंतु सांय पांच बजे प्रधानमंत्री के आह्वान पर कोरोना की लड़ाई लड़ रहे योद्धाओं के समर्थन में लोग शंखनाद, घंटे-घड़ियाल और थाली बजाते हुए कई जगह जुलूस के रूप में सड़क पर निकल आए तो स्थिति काफी खराब हो गई. जिस कारण से उपरोक्त कर्फ्यू लगाया गया था, उसका उद्देश्य ही खत्म कर दिया. इसके बाद 24 मार्च से 21 दिन का लाॅकडाउन घोषित किया गया है जो पुलिस के मदद के बिना कुछ भी मुमकिन नहीं था, इसके दौरान भी कानून व्यवस्था अपरिचित कारणों से प्रभावित हो रही है, जो पुलिस के सामने एकदम नई चुनौती थी,

दुनिया के साथ-साथ अपने देश को भी कोरोनावायरस से फैली महामारी ने हिला कर रख दिया है. इस समय देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल की स्थिति है, ऐसी चुनौती देश के सामने शायद ही कभी आई होगी. जब इस तरह की चुनौती आती है तो उससे मुकाबला करने के लिए अलग-अलग स्तर पर नये-नये मापदंड भी तय करना पड़ते हैं. एक तरफ इस महामारी से निपटने की जिम्मेदारी डॉक्टर, नर्स और अन्य स्वास्थ्यकर्मियों ने बखूबी संभाल रखी है तो दूसरी ओर आपदा की इस घड़ी में देश की शान्ति व्यवस्था बनाये रखना पुलिस की अहम जिम्मेदारी है.

पुलिस महकमें की यह जिम्मेदारी इस लिए और बढ़ जाती है क्योंकि उसे मालूम है कि पुलिस प्रशिक्षण के दौरान ऐसे आपातकाल से कैसे निपटा जाये इसके बारे में उन्हें कोई दिशा-निर्देश ही नहीं दिए गए थे. इसी प्रकार लाॅकडाउन का प्रयोग भी नया है, जिससे निपटने की भी चुनौती से पुलिस को दो-चार होना पड़ रहा है.

इस विषम परिस्थिति में पुलिस नेतृत्व से यह अपेक्षा करना गलत नहीं होगा कि वह उपलब्ध सीमित संसाधनों से अधिक व्यापक सोच से कोरोना महामारी के समय आने वाली समस्याओं को मात देने में सफल रहेगी. पुलिस, किसी भी शासन-प्रशासन का एक ऐसा महत्वपूर्ण अंग है जो कि तत्कालिक दशा लाॅकडाउन, धारा-144, में किसी इलाके को सील करने आदि की कवायद को मूर्त रूप देना इसके साथ-साथ कोरोनावायरस महामारी से देश को बचाने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग को महत्वपूर्ण बताया जा रहा है, जिसे लागू कराने की बड़ी जिम्मेदारी पुलिस विभाग की है. वह इसे बखूबी निभा भी रहा है लेकिन काम के बोझ के दबाव के चलते पुलिसकर्मी तनाव में तो आ ही रहे हैं, इसके अलावा तमाम पुलिसकर्मी कोरोना पाॅजिटिव भी होते जा रहे हैं, जो अलग से चिंता का कारण बना हुआ है.

उपरोक्त के क्रम में यह भी याद रखना होगा कि चिकित्सा कर्मचारी जब संक्रमित व्यक्तियों को आइसोलेशन अथवा क्वारेंटाइन में डालते हैं तब उनकी सहायता मौके पर मौजूद पुलिस ही करती है. यहां यह भी याद रखना है कि स्वास्थ्य कर्मचारियों के पास मानक रूप से सुरक्षात्मक वस्त्र होते हैं, परंतु पुलिस के पास ऐसा कुछ नहीं होता है. इसलिए पुलिस का कार्य ज्यादा जोखिम भरा है. उसे कोरोना पाॅजिटिव को पकड़ने से लेकर अस्पताल तक पहुंचाना होता है. इस दौरान वह सीधे यानी शारीरिक रूप से ऐसे मरीजों के टच में रहता है, जो काफी घातक होता है. ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि हमारी पुलिस उन देशों से सीख ले जहां कोरोना का संक्रमण अपने देश से पहले फैला था. यह भी विचारणीय है कि अन्य देशों के कानून एवं व्यवस्था का सम्पादन भारतवर्ष से भिन्न है. अतः पूरी तरह से तो चीन, जर्मनी, स्पेन अथवा इटली का उदाहरण यहां पर प्रयोग नहीं किया जा सकता है, फिर भी काफी कुछ सबक लिया जा सकता है.

दरअसल ध्यान देने की जरूरत यह भी आवश्यक है कि पुलिस पहले इंसान हैं और इंसानियत भी यह कहती है कि इंसानों के रहने का जहां मुकम्मल हो, फिर वह तो हमारे देश के सिपाही हैं, फिर वही आज देश के सिपाही पन्नी और त्रिपाल तानकर रहने को मजबूर क्यों है, और आखिर कब तक रहेंगे ऐसे, आखिर हम क्यों सवाल नहीं करते हम अपने व्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर उठकर,
अब देखना यह होगा जिस सरकार के लिए 24 घंटे सेवा देने को तत्पर रहता है पुलिस उस पुलिस के संज्ञान लेकर कब तक मरवाही पुलिस को आवास मुहैया कराती है सरकार, यह जानना बहुत दिलचस्प होगा,

मैं खाकी हूं मैं आपके लिए
अपनो को रोता छोड़ आया हूं,